भोपाल, मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya)एक बार फिर अपने बयान को लेकर विवादों में हैं। इस बार उन्होंने महिलाओं के कपड़ों को लेकर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें “खुली ड्रेस” पहनने वाली महिलाएं पसंद नहीं हैं और वे ऐसी महिलाओं के साथ फोटो खिंचवाने से इनकार करते हैं।
विजयवर्गीय ने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लिए परंपरागत पहनावा ज्यादा गरिमामय है और महिलाओं को उसी में रहना चाहिए। उनके अनुसार, कम कपड़े पहनना किसी भी संस्कृति या सभ्यता का संकेत नहीं होता।
बयान से उठा नया विवाद
यह बयान सामने आते ही राजनीतिक हलकों और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। विपक्षी दलों ने इसे महिला विरोधी बताते हुए भाजपा पर हमला बोला है।
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने बयान को “नारी गरिमा का अपमान” करार दिया। तृणमूल कांग्रेस की नेता सुष्मिता देव ने कहा कि यह सोच देश को पीछे धकेल रही है, और नेताओं को महिलाओं की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
पुराना इतिहास भी विवादों से जुड़ा
यह पहला मौका नहीं है जब कैलाश विजयवर्गीय ने इस तरह का बयान दिया हो। वर्ष 2024 में इंदौर में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने महिलाओं के “खराब कपड़ों” की तुलना रामायण की पात्र शूर्पणखा से की थी। तब भी उन्हें तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा था।
महिला संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
महिला अधिकार संगठनों ने विजयवर्गीय के बयान की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि यह सोच महिलाओं को उनके पहनावे के आधार पर आंकने का प्रयास है, जो सामाजिक बराबरी और आज़ादी के मूल्यों के खिलाफ है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “महिलाएं क्या पहनें, यह उनका फैसला है। नेताओं को अपनी सोच को दायरे में रखना चाहिए। भारत अब वह देश नहीं रहा, जहां महिला की पहचान केवल उसके कपड़े से तय हो।”
राजनीतिक माहौल गरमाया
विजयवर्गीय के बयान ने भाजपा को भी असहज स्थिति में ला दिया है। जहां एक ओर पार्टी इस पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं विपक्ष इसे लेकर चुनावी मुद्दा बना सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बयान महिलाओं और युवा मतदाताओं के बीच भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में।
महिलाओं की स्वतंत्रता पर सवाल?
कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) का बयान भारत में महिलाओं की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद पर बहस को और गहरा करता है। यह सोच कि किसी महिला का पहनावा उसकी नैतिकता या गरिमा का पैमाना है, आज के आधुनिक और संवैधानिक भारत में सवालों के घेरे में है।
संविधान हर नागरिक को अपने जीवन के फैसले लेने की स्वतंत्रता देता है — इसमें कपड़े चुनने का अधिकार भी शामिल है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि राजनीतिक नेतृत्व भी संविधान के मूल्यों का सम्मान करे।