श्रीहरिकोटाISRO और NASA मिलकर 30 जुलाई को शाम 5:40 बजे दुनिया के सबसे उन्नत अर्थ-ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) को लॉन्च करेंगे। यह ऐतिहासिक मिशन ना केवल पर्यावरणीय असंतुलन और प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व जानकारी देगा, बल्कि भारत की सामरिक तैयारी और वैज्ञानिक रिसर्च के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी भूमिका निभाएगा।

NISAR क्या है?

NISAR एक अत्याधुनिक डुअल-बैंड रडार सैटेलाइट है जो धरती की सतह पर सूक्ष्मतम परिवर्तनों की निगरानी करेगा — चाहे वे भूकंप हों, ग्लेशियरों की गति हो, वनों की कटाई हो या शहरी विस्तार। इसका लक्ष्य पृथ्वी के बदलते पर्यावरणीय और भूगर्भीय स्वरूप को निरंतर समझना और रिकॉर्ड करना है।

तकनीकी विशिष्टताएं:

विशेषता विवरण
कुल वजन 2400 किलोग्राम
रडार बैंड L-बैंड (NASA) + S-बैंड (ISRO)
एंटीना 12 मीटर का सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR)
कवरेज 240 किमी चौड़ाई की तस्वीरें
लॉन्च स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा
ऑपरेशनल अवधि 5 वर्ष
कक्षा 747 किमी सर्कुलर पोलर ऑर्बिट
दोहराव चक्र हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की इमेजिंग
डेटा एक्सेस मुफ्त और सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध
  1. भूगर्भीय गतिविधियाँ:

    • भूकंप से पहले की ज़मीन की चाल

    • ज्वालामुखीय विस्फोट के संकेत

    • भूस्खलन और हिमस्खलन के पूर्व संकेत

  2. जलवायु परिवर्तन:

    • ग्लेशियरों की पिघलन और बर्फ की मोटाई में बदलाव

    • समुद्री स्तर में वृद्धि

    • कार्बन स्टॉक (जंगलों और वेटलैंड्स में)

  3. कृषि और जल संसाधन:

    • फसल चक्र की निगरानी

    • सिंचाई और सूखे की पहचान

    • भूमिगत जलस्तर में परिवर्तन

  4. वन और जैव विविधता:

    • वनों की कटाई, आग और पुनरुत्पत्ति

    • जैव विविधता वाले क्षेत्रों में मानवीय दखल का असर

  5. सामरिक उपयोग:

    • चीन और पाकिस्तान से सटी सीमाओं की सटीक निगरानी

    • हिमालयी क्षेत्र में बर्फीली हलचल

    • आपदा के बाद बुनियादी ढांचे को समझने की क्षमता

क्या है मिशन की संरचना?

  1. लॉन्च फेज:

    • उपग्रह को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV रॉकेट द्वारा छोड़ा जाएगा।

  2. डिप्लॉयमेंट फेज:

    • अंतरिक्ष में 12 मीटर के एंटीना को फैलाकर सिग्नल भेजने और रिसीव करने के लिए तैयार किया जाएगा।

  3. कमिशनिंग फेज:

    • शुरुआती 90 दिनों में सिस्टम का परीक्षण, सटीकता की पुष्टि और डेटा कैप्चर टेस्टिंग होगी।

  4. साइंस फेज:

    • वास्तविक और वैज्ञानिक रूप से उपयोगी डेटा का संग्रहण और सार्वजनिक वितरण शुरू होगा।

NASA-ISRO सहयोग: भारत के लिए क्या मायने रखता है?

  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर: NASA द्वारा L-बैंड रडार टेक्नोलॉजी, जो अब भारत में कई भविष्य के मिशनों के लिए मील का पत्थर बनेगी।

  • वैज्ञानिक क्षमता का विस्तार: भारतीय शोधकर्ता अब अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ संयुक्त शोध कर सकेंगे।

  • डाटा डेमोक्रेसी: भारत इस उपग्रह से प्राप्त डेटा का उपयोग अपने नीति निर्माण, शहरी नियोजन, और जलवायु रणनीतियों में कर सकेगा।

सार्वजनिक डेटा, सीमित सुरक्षा जोखिम?

इस मिशन का एक बड़ा आकर्षण है कि इसका डेटा फ्री एंड ओपन-सोर्स रहेगा। लेकिन इससे जुड़े कुछ सामरिक विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रकार की उच्च-रिज़ोल्यूशन इमेजिंग से संवेदनशील क्षेत्रों की जानकारी वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक हो सकती है, जिससे रक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं। इस पर ISRO और NASA दोनों के बीच डेटा संप्रेषण को लेकर समझौता हुआ है।

वैज्ञानिकों की राय:

ISRO के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा,

“NISAR, पृथ्वी पर होने वाले परिवर्तनों को समझने और जलवायु नीति में सटीक हस्तक्षेप के लिए विज्ञान का वरदान साबित होगा।”

NASA के प्रशासक बिल नेल्सन ने भी कहा,

“यह पृथ्वी को समझने का सबसे बड़ा कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए डेटा और समाधान दोनों देगा।”

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