नई दिल्ली | भारत द्वारा चलाए गए निर्णायक सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अब राजनीतिक स्तर पर भी संवाद तेज हो गया है। बता दें कि PM नरेंद्र मोदी 9 या 10 जून को उन प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात कर सकते हैं, जो हाल ही में भारत के पक्ष को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से रखने के लिए विदेश यात्रा पर भेजे गए थे।
विदेश से लौटे डेलिगेशन देंगे पीएम को रिपोर्ट
जानकारी के अनुसार, यह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ऑपरेशन सिंदूर के बारे में वैश्विक समुदाय के बीच की गई बातचीत और प्रतिक्रियाओं की जानकारी सीधे प्रधानमंत्री को देगा। इस प्रतिनिधिमंडल में सत्तारूढ़ दल ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता और रणनीतिक विशेषज्ञ भी शामिल हैं, जिससे यह डेलिगेशन भारत की साझा राजनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत सरकार ने सात देशों में सात अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल भेजे थे। इनका उद्देश्य यह था कि पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में चलाए गए सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर को वैश्विक स्तर पर जायज, सीमित और आतंकवाद विरोधी कदम के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
क्यों जरूरी थी यह मुलाकात?
PM मोदी की प्रस्तावित बैठक का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि भारत की विदेश नीति और सैन्य कार्रवाइयों को लेकर कोई भ्रम या विरोधाभास न रहे। डेलिगेशन ने अमेरिका, फ्रांस, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील जैसे प्रमुख देशों का दौरा किया और वहां की सरकारों, थिंक टैंक्स और मीडिया के साथ भारत की स्थिति साझा की। अब वे अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपेंगे ताकि आगे की रणनीति पर विचार किया जा सके।
ऑपरेशन सिंदूर: कब और क्यों?
7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की थी, जो 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब था। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। इसके बाद भारत सरकार ने तय किया कि आतंकियों को उनकी ही भाषा में जवाब दिया जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान और पीओके में मौजूद आतंकियों के 9 ठिकानों को एक साथ टारगेट कर तबाह कर दिया।
इस अभियान में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई। भारत की यह कार्रवाई सटीक और सीमित थी, जिसमें सिर्फ आतंकियों के अड्डों को ही निशाना बनाया गया, आम नागरिकों या पाकिस्तानी सेना की ठिकानों को नहीं।
पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई और भारत की मुंहतोड़ प्रतिक्रिया
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने जवाबी हमले की कोशिश की, लेकिन भारत ने पूरी तरह से उसे विफल कर दिया। पाकिस्तान के हमलों को भारतीय सेना ने सीमा पर ही रोक दिया और भारी नुकसान पहुंचाया। इस झटके से घबराए पाकिस्तान ने 10 मई को युद्धविराम की पेशकश की। पाकिस्तान के DGMO ने भारत के DGMO को फोन कर युद्धविराम पर चर्चा की, जिसके बाद कुछ समय के लिए सीजफायर लागू किया गया।
हालांकि, उसी दिन पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन करते हुए जम्मू के कुछ सेक्टरों में ड्रोन से हमला करने की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने समय रहते नाकाम कर दिया।
डेलिगेशन का उद्देश्य क्या था?
सर्वदलीय डेलिगेशन का मुख्य उद्देश्य चार प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित था:
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भारत का पक्ष मजबूती से रखना – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्पष्ट करना कि भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की है, न कि किसी संप्रभु देश के खिलाफ।
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पाक-प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब करना – यह दिखाना कि पाकिस्तान की सरजमीं से भारत में हमलों की साजिश रची जाती है और वहां की सरकार इन गतिविधियों पर आंखें मूंदे रहती है।
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भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को रेखांकित करना – यह संदेश देना कि भारत आतंकवाद के प्रति कोई नरमी नहीं बरतेगा और अपने नागरिकों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगा।
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कार्रवाई की संवेदनशीलता और संतुलन पर जोर – भारत ने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, किसी नागरिक या धार्मिक स्थल को नुकसान नहीं पहुंचाया, जिससे उसकी कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप रही।
आगे क्या?
डेलिगेशन की रिपोर्ट मिलने के बाद PM मोदी और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) आने वाले हफ्तों में नीति निर्धारण की अगली श्रृंखला पर काम करेंगे। विदेश मंत्रालय भी इन रिपोर्टों के आधार पर कूटनीतिक प्रतिक्रिया तय करेगा।
इस बीच यह भी चर्चा है कि भारत आने वाले समय में कुछ और देशों में प्रतिनिधिमंडल भेज सकता है या संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को लेकर एक विशेष सत्र बुला सकता है।