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चंडीगढ़। हरियाणा की चर्चित यूट्यूबर Jyoti Malhotra की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी के बाद न्यायिक हिरासत को 23 जून 2025 तक बढ़ा दिया गया है। उन पर पाकिस्तान समर्थित एजेंटों के साथ संपर्क में रहकर संवेदनशील जानकारी साझा करने का आरोप है। फिलहाल उन्हें हिसार की सेंट्रल जेल में रखा गया है और जांच एजेंसियां उनके डिजिटल डाटा की गहन पड़ताल कर रही हैं।
क्या है मामला?
पुलिस के अनुसार, ‘Travel with Jo‘ नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वालीJyoti Malhotra को 16 मई को गिरफ्तार किया गया था। उनके पास से जब्त किए गए 12 टेराबाइट डेटा और मोबाइल-लैपटॉप से कई संदिग्ध फाइलें मिलीं हैं। सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े एजेंट ‘दानिश’ (हनसर-उर-रहीम) के संपर्क में थीं।
अब तक की कार्रवाई
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16 मई 2025: गिरफ्तारी
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17-26 मई: 9 दिन की पुलिस हिरासत
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26 मई: 14 दिन की न्यायिक हिरासत (पहली बार)
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9 जून: हिरासत की अवधि 23 जून तक बढ़ाई गई
क्या-क्या मिला?
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12TB डेटा की फॉरेंसिक जांच जारी
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संदिग्ध बैंक ट्रांजैक्शन
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सोशल मीडिया व चैटिंग ऐप्स पर विदेशी एजेंट्स से बातचीत
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6 अन्य संदिग्धों के साथ लिंक
जांच में सामने आया कि ज्योति को विदेशों से फंडिंग भी हुई, जिसका सोर्स स्पष्ट नहीं है। कुछ लेन-देन पाकिस्तानी अकाउंट्स से जुड़े बताए जा रहे हैं।
अब क्या होगा?
पुलिस का कहना है कि अभी जांच अधूरी है और उन्हें डिजिटल साक्ष्य व विदेशी संपर्कों की पूरी जानकारी जुटाने के लिए और समय चाहिए। कोर्ट में अगली पेशी 23 जून को होगी, जहां उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई भी संभव है।
सोशल मीडिया से जासूसी तक?
यह मामला सिर्फ एक यूट्यूबर की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि इस बात का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है कि किस तरह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल विदेशी खुफिया एजेंसियां कर सकती हैं। अधिकारियों ने यह भी कहा है कि ज्योति मल्होत्रा अकेली नहीं, इस नेटवर्क में कई और लोग हो सकते हैं जिनकी तलाश जारी है।
क्या बोले अधिकारी?
“हमने जब्त डिजिटल उपकरणों की गहराई से जांच शुरू कर दी है। कई चैट्स, ईमेल और बैंकिंग लेन-देन बेहद संदिग्ध हैं। अगर यह साबित होता है कि Classified जानकारी साझा की गई है, तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।“
– जांच अधिकारी, स्पेशल सेल
Jyoti Malhotra की गिरफ्तारी यह बताती है कि सोशल मीडिया की आड़ में भी जासूसी जैसे गंभीर अपराध छुपे हो सकते हैं। यह केस सुरक्षा एजेंसियों के लिए सतर्कता और डिजिटल निगरानी के नए मानदंड स्थापित कर सकता है।