मोेदी के न्योता स्वीकार कर लेने पर बिफरा विपक्ष इसे माना भारत की गरिमा के खिलाफ
सत्ता पक्ष बचाव में उतरा- कहा यह भारत के वैश्विक जिम्मेदारी निभाने का मामला
PIONEER DIGITAL DESK
जून माह के अंत में कनाडा के नादिया शहर में होने वाले जी 7 समूह देशों की बैठक “G7 summit 2025” का न्योता सबसे आखरी में मिलने के बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस न्योता को स्वीकार कर लेने पर देेश भर में बहस छिड गई है। देेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसे भारत की गरिमा के खिलाफ बताते हुए मोदी और सत्ता पक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो वहीं अभी न्योता न भेजे जाने पर कनाडा को गरियाने वाला सत्तापक्ष अब बचाव की मुद्रा में आ गया है। वह अब इसे भारत की वैश्विक जिम्मेदारी निभाने का मामला बताते हुए मोदी का समर्थन में बयान देना शुरू कर दिया।
दुनिया के सात शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश जापान, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूके और कनाडा मिलकर”G7 समूह” बनाते हैं । भारत को पिछले कुछ वर्षों से “गेस्ट नेशन” के तौर पर बुलाया जाता रहा है। विष्लेशकों का सवाल है कि इस बार भारत को आमंत्रण मिलने में हुई स्पष्ट देरी भारत के बढ़ते वैश्विक कद के खिलाफ एक रणनीतिक संकेत है? या फिर जानबूझकर भारत की स्थिति को “आमंत्रित गेस्ट” तक सीमित रखने की कोशिश? जानकारों की मानें तो जी7 देशों में चीन के मुकाबले भारत को एक संतुलन शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन फिर भी G7 उसे “कोर सदस्य” में शामिल नहीं करता।आमंत्रण में देरी दर्शाता है कि भारत को बराबरी का भागीदार नहीं, बल्कि “जब ज़रूरत पड़े तब बुलाओ” जैसी नीति से देखा जा रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत को देर से बुलाकर पश्चिमी देश यह दिखाना चाहते हैं कि भारत को अभी भी प्रतीक्षा करनी होगी जब तक वह “मूल्य आधारित लोकतांत्रिक क्लब” में पूरी तरह शामिल न हो।
मोदी का दौरा स्वीकारना: कूटनीति या लाचारी?
देरी से आए आमंत्रण को मोदी ने क्यों स्वीकारा इसे लेकर भी दो तरह की राय सामने आ रही हैं। एक वर्ग का मानना है कि यह मोदी की कूटनीतिक चाल है जो यह दिखाता है कि भारत किसी भी वैश्विक मंच पर अपनी बात रखने से पीछे नहीं हटेगा भले ही बुलावा देर से आए। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि आमंत्रण स्वीकार कर लेने में पीएम मोदी की लाचारी दिख रही है। मोदी को “राष्ट्रीय सम्मान के साथ बुलावा नहीं मिला है” उन्हें दौरा ठुकराना चाहिए था ताकि एक स्पष्ट संदेश जाए। मोदी को यह स्पष्ट करना चाहिए था कि इस तरह की ‘देर से आमंत्रण’ की नीति स्वीकार्य नहीं है।
इन गैर सदस्य देशों को काफी पहले मिला न्योता:
1.यूक्रेन :आमंत्रित किया गया: मार्च 2025 में, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को 51वें जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।रूस-यूक्रेन युद्ध के चौथे वर्ष में, यह निमंत्रण एकजुटता का संकेत है। ज़ेलेंस्की ने अपनी भागीदारी की पुष्टि की है
2.ऑस्ट्रेलिया : मई 2025 में आमंत्रित किया गया, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ को आमंत्रित किया।
3.मेक्सिको: मई 2025 में आमंत्रित किया गया, कनाडा ने मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम को आमंत्रित किया। शीनबाम ने संकेत दिया कि वह भागीदारी पर विचार कर रही हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति की पुष्टि नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि यह “एक संभावना” है।
4.ब्राजील : 30 मई 2025 कोआमंत्रित किया गया, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को आमंत्रित किया गया लूला के भाग लेने की उम्मीद है, जैसा कि कनाडा द्वारा घोषित किया गया
5.दक्षिण अफ्रीका : कनाडा ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा को आमंत्रित किया, हालांकि सटीक तारीख स्पष्ट नहीं है। दक्षिण अफ्रीकी उच्चायोग ने कनाडा प्रेस को पुष्टि की कि रामाफोसा को निमंत्रण मिला है। यह उल्लेखनीय है क्योंकि दक्षिण अफ्रीका 2025 में जी20 की अध्यक्षता भी कर रहा है।
देर से क्यों बुलाया कनाडा ने ?
मेंजबान देश (इस बार कनाडा) को यह अधिकार है कि वह अपनी प्राथमिकताओं और विदेश नीति के आधार पर गैर-सदस्य देशों को आमंत्रित करे। 2023 में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या के बाद से भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हैं। तत्कालीन कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार के एजेंटों की “संभावित” संलिप्तता का आरोप लगाया, जिसे भारत ने “बेतुका” और “प्रेरित” बताकर खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों ने राजनयिकों को निष्कासित किया और संबंध न्यूनतम स्तर पर आ गए। कनाडा को मेजबानी मिलने के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि कनाडा में हो रहे आयोजन में मोेदी को बुलाए जाने की संभावना बहुत कम है। यही वजह है कि कनाडा की अंतिम प्राथमिकता में भारत को बुलाना था। मोदी को आमंत्रित करते हुए कनाडाई राष्ट्रपति ने कहा “कुछ ऐसे देश हैं जिन्हें इन चर्चाओं में शामिल होना चाहिए और जी7 अध्यक्ष के रूप में मैं इन निर्णयों को लेने के लिए कुछ अन्य देशों से परामर्श करूंगा. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, प्रभावी रूप से दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, उन आपूर्ति श्रृंखलाओं में से कई के केंद्र में है, इसलिए यह समझ में आता है.” लेकिन जी7 समूह के अन्य देेशों के दबाव की वजह से कनाडा भारत को बुलाने पर मजबूर हो गया।
कनाडा की संबंध सुधारने की कोशिश :
कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री मोदी को G7 सम्मेलन में आमंत्रित किया है । एक तरफ जहां यह कदम द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने की कोशिश मानी जा रही है, वहीं दूसरी ओर भारत ने खालिस्तानी रैलियों और हिंसा के चलते अपनी राजनयिकों और प्रवासी समुदाय को सुरक्षा खतरे के संदर्भ में सतर्क किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कई बार रैलियों में हिंसक प्रतीकों का इस्तेमाल करने और तिरंगे का अपमान करने के लिए गहरी आपत्ति जताई है, लेकिन कनाडा की तरफ से कोई कदम नहीं उठाए गये हैं।उल्लेेखनीय है कि सिख फेडरेशन ऑफ कनाडा और वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन जैसे समूहों ने मई 2025 में कार्नी सरकार से मोदी को निमंत्रण न देने की मांग की थी, जब तक कि भारत निज्जर हत्या की जांच में सहयोग न करे।
किल मोदी के नारे लगे :
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के भारत विरोधी प्रदर्शन के दौरान पीएम मोदी की हत्या की धमकी दी गई है। खालिस्तान समर्थक पीएम मोदी को G7 शिखर सम्मेलन में बुलाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, इस दौरान ‘किल मोदी’ (मोदी को मार डालो) के नारे लगाए गए। कनाडा के पीएम मार्क कार्नी ने 15 से 17 जून तक अल्बर्टा में होने वाले G7 शिखर सम्मेलन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया है।
भारत को पांचवी अर्थ व्यवस्था कहने पर बवाल :
कनाडा के राष्ट्रपति के भारत को पांचवी वडी अर्थव्यवस्था कहे जानेे पर बवाल हाे गया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जी7 शिखर सम्मेलन में निमंत्रण मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है। उन्होंने पूछा कि क्या पीएम मोदी सम्मेलन के दौरान अपने कनाडाई समकक्ष को बताएंगे कि भारत अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
“कुछ ऐसे देश हैं जिन्हें इन चर्चाओं में शामिल होना चाहिए और जी7 अध्यक्ष के रूप में मैं इन निर्णयों को लेने के लिए कुछ अन्य देशों से परामर्श करूंगा। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, प्रभावी रूप से दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, उन आपूर्ति श्रृंखलाओं में से कई के केंद्र में है, इसलिए यह समझ में आता है।”