नई दिल्ली । हाल ही में भारत ने वैश्विक निगरानी संस्था FATF (Financial Action Task Force) से आग्रह किया है कि वह पाकिस्तान को पुनः अपनी ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल करे। लेकिन सवाल यह उठता है – यह ‘ग्रे लिस्ट’ होती क्या है, और इसमें शामिल होने के क्या प्रभाव होते हैं? आइए समझते हैं।
FATF क्या है?
FATF यानी वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग और अन्य वित्तीय अपराधों पर नजर रखती है। इसकी स्थापना 1989 में की गई थी और इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में है।
क्या है ग्रे लिस्ट?
FATF दो प्रकार की निगरानी सूचियाँ बनाता है:
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ग्रे लिस्ट (Grey List) – इसमें वे देश शामिल होते हैं जो मनी लॉन्ड्रिंग या टेरर फंडिंग को रोकने में विफल रहे हैं, लेकिन उन्होंने सुधार के लिए वादा किया है।
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ब्लैक लिस्ट (Black List) – इनमें वे देश आते हैं जो सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाते, जैसे उत्तर कोरिया और ईरान।
ग्रे लिस्ट में शामिल होना कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन यह देश की आर्थिक छवि और विदेशी निवेश पर बुरा असर डालता है।
भारत क्यों चाहता है कि पाकिस्तान दोबारा ग्रे लिस्ट में आए?
भारत का आरोप है कि पाकिस्तान ने अभी तक आतंकवाद को वित्तीय मदद देने वाले ढांचे को पूरी तरह खत्म नहीं किया है।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 निर्दोष मारे गए, ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। भारत का कहना है कि:
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पाकिस्तान आतंकी संगठनों को छिपे तौर पर समर्थन दे रहा है
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आतंकी फंडिंग रोकने के लिए ज़रूरी आर्थिक सुधार अभी अधूरे हैं
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पाकिस्तान को IMF और ADB से मिली आर्थिक मदद का दुरुपयोग हो सकता है
ग्रे लिस्ट में आने से पाकिस्तान को क्या नुकसान होगा?
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विदेशी निवेश घटेगा
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आर्थिक रेटिंग गिर सकती है
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IMF, ADB और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से फंड मिलना मुश्किल हो जाएगा
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मुद्रा (रुपया) पर दबाव बढ़ेगा, महंगाई बढ़ेगी
पाकिस्तान 2018 से 2022 तक FATF की ग्रे लिस्ट में रह चुका है, और उस दौरान उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था।
FATF आगे क्या करेगा?
FATF की अगली बैठक में यह तय होगा कि क्या पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में शामिल किया जाए या नहीं। भारत इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जोर-शोर से उठा रहा है।