हर साल 16 जुलाई को मनाया जाने वाला “वर्ल्ड AI डे” अब केवल एक तकनीकी दिवस नहीं, बल्कि भविष्य के लिए सोचने का दिन बन गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की खोज भले ही 1950 के दशक में हुई थी, लेकिन इसका असली प्रभाव 21वीं सदी की दूसरी तिमाही में नजर आया। कंप्यूटर वैज्ञानिक एलन ट्यूरिंग के विचारों से जन्मी यह क्रांति आज मानव जीवन के हर क्षेत्र को छू रही है।
AI का इतिहास और वर्ल्ड AI डे की शुरुआत
AI की अवधारणा 1956 में डार्टमाउथ सम्मेलन से हुई। 2015 के बाद, क्लाउड कंप्यूटिंग और बिग डेटा के विकास से AI का व्यावसायिक उपयोग तेज हुआ। वर्ल्ड AI डे की शुरुआत 2020 में वैश्विक स्तर पर की गई थी ताकि तकनीकी विकास के साथ नैतिकता, शिक्षा और नीति-निर्माण पर भी चर्चा हो सके। 2025 में यह दिन खास बन गया है, क्योंकि अब AI केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है।
रणनीतिक निवेश और वैश्विक प्रतिस्पर्धा
मोदी–मैक्रॉन की साझेदारी से पहले AI Action Summit (फ़रवरी 2025) में यूरोपीय संघ ने InvestAI में €200 बिलियन निवेश की घोषणा की । फ्रांस में निजी निवेश €110 बलियन और कनाडा, यूएई, भारत समेत कई देशों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया। इसका लक्ष्य लोककल्याण AI, बड़े डेटा केंद्र, और सुरक्षित AI विकास को आगे बढ़ाना था ।
अमेरिका 2024 में दुनिया के 73% AI कंप्यूटिंग पावर पर नियंत्रण करता था, वहीं चीन (58% उद्यमों) और भारत (57%) तेज़ AI प्रवेश दर्ज कर रहे हैं। अमेरिका–चीन दोध्रुवीय AI व्यवस्था बन रहा है, जबकि यूरोप निर्धारित नीति–नियमों में अपनी भूमिका निभा रहा है ।
हर सेक्टर पर AI का असर: स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय, मीडिया, रक्षा
AI ने हेल्थकेयर को बिल्कुल बदल दिया है। अब मशीनें कैंसर जैसे रोगों की पहचान MRI से पहले कर लेती हैं। शिक्षा में AI आधारित प्लेटफॉर्म छात्रों को उनके स्तर के हिसाब से गाइड करते हैं। न्याय प्रणाली में केस प्रेडिक्शन सिस्टम से न्यायिक प्रक्रिया तेज हो रही है। मीडिया में ऑटो-जर्नलिज्म और रक्षा में ड्रोन व डेटा-संचालित युद्ध रणनीतियों ने युद्ध की परिभाषा ही बदल दी है।
भारत की AI नीति और पहल: Bhashini और Digital India AI
भारत सरकार ने 2023 में ‘National Program on AI’ की शुरुआत की, जिसमें ‘Bhashini’ जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। यह कार्यक्रम भारत की 22 भाषाओं में AI का विकास कर रहा है, जिससे तकनीक गांव तक पहुंच सके। डिजिटल इंडिया AI मिशन के तहत ₹10,371 करोड़ का निवेश कर भारत को AI उत्पादन और नवाचार में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश जारी है।
AI और लोकतंत्र: चुनावों पर प्रभाव
AI आधारित डेटा एनालिटिक्स और माइक्रोटारगेटिंग से चुनावी रणनीति बदल चुकी है। अमेरिका और भारत जैसे लोकतंत्रों में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए AI का प्रयोग कर रही हैं। इससे एक ओर चुनावी भागीदारी बढ़ी है, लेकिन दूसरी ओर मतदाताओं की निजता और सूचना के दुरुपयोग को लेकर गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं।
फेक न्यूज और जेनरेटिव AI से खतरे
AI आधारित टूल जैसे GPT और DALL·E ने फर्जी खबरें, डीपफेक वीडियो और नकली बयानों को तेजी से फैलाने की क्षमता दे दी है। इसके कारण समाज में गलत धारणाएं बन रही हैं और हिंसा, घृणा व भ्रम फैल रहा है। AI के नियमन के लिए वैश्विक नीति की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: अमेरिका vs चीन vs भारत
AI में अमेरिका अग्रणी है, जिसके पास सबसे अधिक GPU संसाधन और डेटा है। चीन AI स्टार्टअप्स और मिलिट्री एप्लिकेशन में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत अपनी जनसंख्या, भाषाई विविधता और डिजिटल संरचना के चलते एक विशाल AI प्रयोगशाला बन रहा है। ‘ग्लोबल साउथ’ की अगुआई में भारत की भूमिका अहम हो गई है।
आम आदमी पर असर: किसान, छात्र, नौकरीपेशा वर्ग
AI अब खेतों में फसल पूर्वानुमान, मृदा गुणवत्ता विश्लेषण और कीट नियंत्रण के लिए इस्तेमाल हो रहा है। छात्रों के लिए अनुकूलित शिक्षा और नौकरीपेशा लोगों के लिए कार्यस्वचालन (automation) से काम की प्रकृति बदल गई है। लेकिन इससे पारंपरिक रोजगारों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
नीति, नैतिकता और भविष्य की रूपरेखा
AI की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए नीति, नियम और नैतिकता अनिवार्य हो गए हैं। भारत ने DPDP (डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन) कानून पास कर इसके नियमन की दिशा में कदम बढ़ाया है। वैश्विक स्तर पर AI सुरक्षा और पारदर्शिता को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक सक्रिय हो गया है।
चुनौतियां: नैतिकता, नियमन, पर्यावरण
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भरोसा और पारदर्शिता की कमी
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केवल 46% अमेरिकी AI पर भरोसा करते हैं; 61% दुनिया में सद्भाव रखते हैं, लेकिन केवल 28% को पूरी समझ है
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IRCAI–UNESCO AI Day प्रमुख संदेश: भरोसा, नैतिकता, जनहित
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नियंत्रण व शासन
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अंतर्राष्ट्रीय AI सुरक्षा रिपोर्ट: जॉब, तापमान, साइबर – सबमें खतरे; AGI की भविष्य भयावहता ।
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तकनीक नहीं, एक जिम्मेदारी
वर्ल्ड AI डे एक चेतावनी है कि तकनीक मानवता की सेवा में होनी चाहिए, न कि उसकी नियंत्रणकर्ता बने। भारत जैसे देशों को चाहिए कि वे नवाचार और लोकहित के बीच संतुलन बनाएं। AI न केवल एक आर्थिक शक्ति है, बल्कि यह सामाजिक बदलावों की धुरी बन चुका है। सही दिशा, नियमन और सहभागिता से ही AI वास्तव में ‘आर्टिफिशियल’ नहीं, ‘स्मार्ट’ इंटेलिजेंस साबित होगा।