नई दिल्ली । दुनिया की नज़रें एक बार फिर पूर्वी एशिया की ओर टिक गई हैं, क्योंकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि इस साल Russia–China संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगे। यह ऐलान ऐसे समय में आया है जब पश्चिमी देशों और नाटो के साथ रूस के संबंधों में भारी तनाव है।

“हम अपने रणनीतिक साझेदार चीन के साथ इस वर्ष संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगे,” – पुतिन, सेंट पीटर्सबर्ग अंतरराष्ट्रीय मंच में भाषण के दौरान।

यह युद्धाभ्यास रूस-चीन संबंधों में न केवल बढ़ती निकटता का प्रतीक है, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश भी माना जा रहा है।

क्या होगा इस अभ्यास का स्वरूप?

हालांकि इस अभ्यास की तिथियों और स्थान की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि यह अभ्यास प्रशांत महासागर क्षेत्र, साइबेरिया या दक्षिणी चीन सीमा के आसपास हो सकता है।

2021 और 2023 में भी रूस और चीन के बीच संयुक्त अभ्यास हुए थे, लेकिन इस बार के अभ्यास को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में असाधारण रुचि है।

पश्चिम के लिए नया सिरदर्द?

नाटो की बढ़ती सक्रियता, यूक्रेन में युद्ध और ताइवान को लेकर अमेरिका-चीन टकराव के बीच रूस-चीन की यह नज़दीकी कई देशों को चिंतित कर रही है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह अभ्यास सिर्फ सैन्य कौशल का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक “भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन” स्थापित करने की कोशिश है।

“यह अभ्यास पश्चिम को यह दिखाने के लिए है कि अगर ज़रूरत पड़ी, तो रूस और चीन मिलकर किसी भी मोर्चे पर खड़े हो सकते हैं,” – प्रो. अलेक्सेई मिखाइलोव, रूसी सैन्य विश्लेषक।

भारत के लिए संकेत या चुनौती?

भारत, जो ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंचों पर रूस और चीन दोनों के साथ है, इस घटनाक्रम को सावधानीपूर्वक निगरानी कर रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए यह अभ्यास रणनीतिक असहजता पैदा कर सकता है, खासकर जब चीन के साथ सीमा पर तनाव अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।

रूस-चीन की बढ़ती दोस्ती: सिर्फ सैन्य नहीं

रूस और चीन ने हाल के वर्षों में सिर्फ रक्षा ही नहीं, बल्कि ऊर्जा, व्यापार और तकनीक के क्षेत्रों में भी गहरा सहयोग बढ़ाया है।

  • रूस चीन को सस्ती गैस और तेल की आपूर्ति कर रहा है

  • दोनों देश डॉलर की जगह स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं

  • अब सैन्य क्षेत्र में बढ़ती साझेदारी से यह दोस्ती और भी ठोस हो गई है

क्या कहता है वैश्विक परिप्रेक्ष्य?

पश्चिमी विश्लेषकों का मानना है कि यह अभ्यास “नया शीत युद्ध” जैसे हालातों की आहट हो सकता है।

“रूस-चीन की ये सैन्य कवायदें भविष्य की विश्व राजनीति को दो ध्रुवों में बांट सकती हैं।” – जनरल डेविड पेट्रायस (सेवानिवृत्त), अमेरिकी विश्लेषक

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