तोक्यो। Japan की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा को उस वक्त तगड़ा झटका लगा जब उनकी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) और गठबंधन सहयोगी कोमेइतो ऊपरी सदन में बहुमत हासिल करने में असफल रहे। इसके साथ ही इशिबा का गठबंधन अब जापान की संसद डायट के दोनों सदनों में अल्पमत में आ गया है।
ऊपरी सदन में लक्ष्य से चूके इशिबा
रविवार को हुए चुनाव में हाउस ऑफ काउंसलर्स की कुल 248 में से 124 सीटों के लिए मतदान हुआ। एलडीपी गठबंधन के पास पहले से ही 75 सीटें थीं, और बहुमत बनाए रखने के लिए 50 सीटें और जीतनी जरूरी थीं। लेकिन गठबंधन केवल 47 सीटें ही जीत पाया। एक सीट पर फैसला अभी लंबित है।
इस नतीजे ने प्रधानमंत्री इशिबा की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया है, हालांकि ऊपरी सदन में बहुमत खोने से सरकार तुरंत नहीं बदलती, क्योंकि उच्च सदन में अविश्वास प्रस्ताव पारित करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
निचले सदन में पहले ही हो चुकी है हार
यह झटका इशिबा सरकार के लिए दूसरा बड़ा राजनीतिक संकट है। इससे पहले, गठबंधन निचले सदन में भी बहुमत खो चुका है। एलडीपी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि उसने दोनों सदनों में बहुमत गंवाया हो। पार्टी की स्थापना 1955 में हुई थी, और तब से लेकर अब तक यह उसके लिए सबसे बड़ी रणनीतिक पराजय मानी जा रही है।
पीएम इशिबा का बयान: “मैं जिम्मेदारी से नहीं भागूंगा”
चुनाव नतीजों के बाद पीएम इशिबा ने कहा,
“मैं शीर्ष पार्टी के प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगा और देश के लिए काम करता रहूंगा। यह एक कठिन स्थिति है, जिसे मैं विनम्रता और ईमानदारी से स्वीकार करता हूं।”
उन्होंने आगे कहा कि महंगाई से राहत के लिए उठाए गए कदमों का असर शायद अभी लोगों तक नहीं पहुंच पाया है, जो इस हार का एक कारण हो सकता है।
एग्जिट पोल ने पहले ही जताई थी हार की आशंका
जापान के सरकारी टेलीविजन एनएचके समेत अन्य चैनलों के एग्जिट पोल में भी एलडीपी गठबंधन की हार की संभावना जताई गई थी। एनएचके के मुताबिक, गठबंधन को 32 से 51 सीटें मिलने का अनुमान था। वहीं कुछ अन्य मीडिया एजेंसियों ने 40 से अधिक सीटों की संभावना जताई थी। नतीजे लगभग इसी दायरे में रहे।
राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ता जापान?
विश्लेषकों का मानना है कि इन परिणामों से जापान की राजनीति में अनिश्चितता और अस्थिरता बढ़ सकती है। दोनों सदनों में बहुमत न होने से इशिबा सरकार की नीतियों को लागू कर पाना मुश्किल हो सकता है। खासकर आर्थिक सुधार और विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार को गठबंधन सहयोगियों और विपक्ष दोनों की सहमति लेनी पड़ेगी।
क्या आगे बढ़ेगा नेतृत्व परिवर्तन का दबाव?
राजनीतिक हलकों में अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या पार्टी पीएम इशिबा के स्थान पर नया नेतृत्व खोजेगी? पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन अंदरूनी खेमेबाजी तेज हो गई है। विपक्ष पहले ही समय से पहले चुनाव और इशिबा के इस्तीफे की मांग करने लगा है।