नई दिल्ली । अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य कैलिफोर्निया इन दिनों लोकतंत्र और शक्ति के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। लॉस एंजिल्स में आव्रजन नीति और Trump प्रशासन की ‘आक्रामक कार्रवाई’ के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Trump) द्वारा 700 मरीन कमांडो और लगभग 4,800 नेशनल गार्ड की तैनाती के बाद हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं।
इस सैन्य कार्रवाई को गवर्नर गैविन न्यूशम ने “लोकतंत्र पर सीधा हमला” बताया है और अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने दावा किया कि यह तैनाती संघीय प्रणाली की अवहेलना है और इससे नागरिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है।
Trump प्रशासन ने इसे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा’ और ‘अराजकता को रोकने का जरूरी कदम’ बताया है।
कर्फ्यू लागू, लेकिन जनता नहीं झुकी
लॉस एंजिल्स के डाउनटाउन इलाके में स्थानीय प्रशासन ने सोमवार रात से रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लागू कर दिया है। इसके बावजूद, मंगलवार रात को हजारों लोग सड़कों पर उतरे और ‘फेडरल तानाशाही के खिलाफ’ प्रदर्शन किया।
पुलिस ने भी सख्त रुख अपनाया और प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए आंसू गैस, धुआं बम और प्रोजेक्टाइल का इस्तेमाल किया गया। अकेले मंगलवार को ही 197 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया।
प्रदर्शन का कारण क्या है?
इन प्रदर्शनों की जड़ में है ट्रम्प प्रशासन की नई ‘फास्ट ट्रैक डिपोर्टेशन पॉलिसी’, जिसमें बिना वीज़ा या दस्तावेज़ के पाए गए प्रवासियों को तुरंत देश से निकाला जा सकता है। इसके अलावा, हाल ही में कई समुदायों में छापेमारी कर सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया, जिससे असंतोष की आग भड़क गई।
इस नीति का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे अमेरिका में अल्पसंख्यकों की आज़ादी और अधिकारों को सीधा खतरा है।
प्रदर्शन का विस्तार
इस विरोध की लहर केवल लॉस एंजिल्स तक सीमित नहीं है। अब तक यह आंदोलन 12 राज्यों के 25 से अधिक शहरों में फैल चुका है, जिनमें न्यूयॉर्क, शिकागो, फिलाडेल्फिया, पोर्टलैंड, सिएटल, सैन फ्रांसिस्को प्रमुख हैं।
कई जगहों पर हाईवे बंद किए गए हैं, ट्रेनों को रोका गया है और सरकारी इमारतों के बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ उमड़ रही है।
ट्रम्प की सैन्य तैनाती: ‘शक्ति की राजनीति’?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने लॉस एंजिल्स में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सीधे नेशनल गार्ड और यूएस मरीन की तैनाती की। यह फैसला उस वक्त आया जब गवर्नर न्यूशम ने नेशनल गार्ड को स्थानीय जरूरत के अनुसार संयम से तैनात करने की बात कही थी।
ट्रम्प का कहना है कि “अराजकता और हिंसा को रोकना सरकार की जिम्मेदारी है, चाहे किसी भी राज्य में हो।” उन्होंने यह भी संकेत दिए कि यदि ज़रूरत पड़ी, तो वह Insurrection Act (विद्रोह कानून) का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह कानून राष्ट्रपति को राज्यों की सहमति के बिना भी सेना तैनात करने की इजाज़त देता है, लेकिन इसका इस्तेमाल अंतिम विकल्प के रूप में किया जाता है।
गवर्नर न्यूशम की प्रतिक्रिया
कैलिफोर्निया के गवर्नर गैविन न्यूशम ने कहा –
“यह सिर्फ लॉस एंजिल्स की बात नहीं है, यह अमेरिका के लोकतंत्र पर सीधा हमला है। राष्ट्रपति ने बिना राज्य की सहमति के फौज भेजी, यह संघीय तंत्र का उल्लंघन है।”
न्यूशम ने संघीय अदालत में आपात याचिका दायर की, जिसमें इस तैनाती को असंवैधानिक बताते हुए रोक लगाने की मांग की गई है।
फिलहाल अदालत ने तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया है, लेकिन 12 जून को अगली सुनवाई तय की गई है, जो इस टकराव की दिशा तय कर सकती है।
स्थानीय प्रशासन का दबाव
लॉस एंजिल्स की मेयर करेन बैस ने भी चिंता जताई है। उन्होंने कहा, “हमें स्थानीय स्तर पर हालात संभालने की ज़रूरत है, न कि सैन्य ताकत से डराने की।”
मेयर के अनुसार, अभी तक सैन्य टुकड़ियां केवल फेडरल बिल्डिंग्स की रक्षा कर रही हैं, लेकिन इससे शहर का नागरिक वातावरण असामान्य हो गया है।
वित्तीय प्रभाव
पेंटागन के अनुमान के मुताबिक, नेशनल गार्ड और मरीन की तैनाती पर अब तक लगभग $134 मिलियन डॉलर (करीब ₹1100 करोड़ रुपये) खर्च हो चुके हैं।
यह बजट स्थानीय सरकारों की मंजूरी के बिना खर्च हो रहा है, जिससे राज्य सरकारें नाराज़ हैं।
जनता क्या कह रही है?
प्रदर्शन में शामिल युवाओं, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह ‘न्याय के लिए लड़ाई’ है। उनका मानना है कि अगर आज आवाज़ नहीं उठाई गई तो कल नागरिक स्वतंत्रता पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
प्रदर्शनकारी पोस्टर लिए नारे लगा रहे हैं –
“No Justice, No Peace”,
“We are not the enemy”,
“Down with federal fascism”
क्या होगा आगे?
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12 जून को फेडरल कोर्ट में सुनवाई – इसमें तय होगा कि ट्रम्प की सैन्य तैनाती जारी रहेगी या नहीं।
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कर्फ्यू की अवधि बढ़ाई जा सकती है।
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अन्य शहरों में भी विरोध प्रदर्शन तेज होने की आशंका।