नई दिल्ली: जब दुनिया अमेरिका-ईरान टकराव और भारत-पाक तनाव की खबरों से उलझी थी, तभी एक चुपचाप हुआ लंच वॉशिंगटन में तूफान लेकर आया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के बीच व्हाइट हाउस में हुई गोपनीय बैठक ने कूटनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है।
ट्रंप ने प्रेस को बताया कि उन्होंने यह मुलाक़ात “परमाणु युद्ध को टालने में मुनीर की भूमिका के लिए” की। साथ ही ईरान पर भी गहराई से बातचीत हुई।
“जनरल मुनीर समझदारी के प्रतीक हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच युद्ध को टालने का श्रेय उन्हें भी जाता है,” – ट्रंप।
‘सीक्रेट लंच’, लेकिन असर पब्लिक!
व्हाइट हाउस में इस तरह की बैठकें सामान्यतः रक्षा सचिव या सुरक्षा सलाहकार के ज़रिये होती हैं, लेकिन एक सीधे राष्ट्रपति स्तर पर सेना प्रमुख से मुलाक़ात, वो भी मीडिया के बिना — इसे पाकिस्तानी मीडिया में कूटनीतिक जीत की तरह दिखाया जा रहा है।
सोशल मीडिया पर इस “लंच डिप्लोमेसी” ने तूफ़ान मचा दिया है। पाकिस्तान के विश्लेषक इसे मोदी सरकार की कथित ‘आतंकवाद’ वाली नैरेटिव की हार के रूप में पेश कर रहे हैं।
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पाकिस्तानी विश्लेषकों ने इस मीटिंग को कूटनीतिक जीत करार दिया। पत्रकार कामरान यूसुफ़ ने लिखा:
“भारत ने जिस आतंकवाद नैरेटिव से पाकिस्तान को घेरने की कोशिश की, वह इस मुलाक़ात में ट्रंप द्वारा एक तरह से खारिज कर दिया गया।”
कुछ ने इसे पीटीआई समर्थक लॉबी के लिए झटका बताया, जिन्होंने वॉशिंगटन में पाकिस्तान की छवि सुधारने में करोड़ों लगाए।
भारत में क्या हो रहा है? सन्नाटा या रणनीति?
पूर्व राजनयिक विवेक काटजू ने कहा:
“सेना प्रमुख के लिए राष्ट्रपति स्तर पर लंच असामान्य है। इससे अमेरिका की मंशा साफ़ होती है – पाकिस्तान के साथ संतुलन बनाए रखना।”
सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका पाकिस्तान को ईरान-इसराइल तनाव में मध्यस्थ की भूमिका सौंप सकता है।
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ट्रंप और मुनीर की बातचीत में ईरान भी चर्चा में रहा। ट्रंप ने खुद कहा कि
“जनरल मुनीर ईरान को दूसरों से बेहतर समझते हैं।”
इससे यह संकेत मिला कि पाकिस्तान, अमेरिका और ईरान के बीच एक ‘शटल डिप्लोमेसी’ की भूमिका निभा सकता है – जैसा उसने अतीत में कई बार किया है।
हाल ही में आसिम मुनीर की तेहरान यात्रा और ईरानी शीर्ष नेताओं से मुलाक़ात ने यह संदेह और भी मज़बूत कर दिया है कि पाकिस्तान को अब ईरान-इसराइल संघर्ष में एक बैलेंसिंग एक्ट सौंपा गया है।
ट्रंप की रणनीति – पुराने रास्ते की वापसी?
ब्रह्मा चेलानी जैसे विश्लेषक मानते हैं कि यह बैठक अमेरिका की “संतुलनकारी” विदेश नीति की वापसी है:
“अगर ट्रंप मुनीर से ईरान पर गुप्त सहयोग चाहते हैं, तो वो अल्पकालिक फायदे के लिए पुराने ‘नेटवर्क’ की अनदेखी कर सकते हैं।”