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देश की सर्वोच्च अदातल ने मातृत्व अवकाश का फैसला सुनाया है I कोर्ट ने कहा कि संविधान का (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) महिलाओं को सम्मानपूर्वक और सुरक्षित मातृत्व का अधिकार देता है। इसलिए कोई भी नियोक्ता यह तय नहीं कर सकता कि महिला को मातृत्व अवकाश मिलेगा या नहीं — यह उसका मौलिक अधिकार है।
मातृत्व अवकाश यानी मैटरनिटी लीव महिलाओं के लिए एक अत्यंत आवश्यक और संवैधानिक अधिकार है। यह अधिकार महिलाओं को बच्चे के जन्म के समय शारीरिक और मानसिक आराम देने के साथ-साथ नवजात शिशु की देखभाल करने का अवसर प्रदान करता है। हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसने मैटरनिटी लीव को महिलाओं का मौलिक अधिकार घोषित किया है, चाहे वे दूसरी शादी के बाद क्यों न हों। इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है।
भारत में पारंपरिक रूप से महिलाओं को मातृत्व और घरेलू जिम्मेदारियों के लिए सम्मानित किया जाता है, लेकिन कार्यस्थल पर उनकी समस्याएँ अभी भी जटिल हैं। खासकर उन महिलाओं के लिए जो दूसरी शादी के बाद सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, मातृत्व अवकाश को लेकर विवाद पैदा हो जाता है। कई बार प्रशासन या नियोक्ता यह तर्क देते हैं कि दूसरी शादी में मातृत्व अवकाश का अधिकार सीमित या समाप्त हो जाता है। ऐसे मामलों में महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है।
मातृत्व अवकाश का महत्व
मातृत्व अवकाश वह अवधि होती है, जब एक महिला अपने बच्चे के जन्म के बाद आराम कर सके और नवजात की देखभाल कर सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मातृत्व अवकाश के दौरान मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है, जिससे शिशु के उचित विकास में सहायता मिलती है। भारत में भी मैटरनिटी लीव के महत्व को लंबे समय से समझा गया है, लेकिन सामाजिक और कानूनी स्तर पर कई जटिलताएँ सामने आती रही हैं।
दूसरी शादी और मातृत्व अधिकार पर विवाद
भारत में पारंपरिक सामाजिक संरचना में विवाह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, बदलते सामाजिक परिवेश और जीवनशैली के कारण दूसरी शादी करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है। ऐसी महिलाओं को मातृत्व अवकाश प्रदान करने में कई बार दिक्कतें आती हैं। सरकारी और निजी संस्थान मातृत्व अवकाश के आवेदन को वैवाहिक स्थिति के आधार पर टाल देते हैं या अस्वीकार कर देते हैं। यह व्यवहार महिलाओं के अधिकारों का हनन है।
Supreme Court का निर्णय और उसकी अहमियत
Supreme Court ने इस विवाद पर जो फैसला सुनाया, वह महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में क्रांतिकारी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “मातृत्व अवकाश न केवल एक सुविधा है, बल्कि यह महिलाओं का मौलिक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत सुरक्षित है।” कोर्ट ने कहा कि किसी महिला को उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर मातृत्व अवकाश से वंचित करना गलत है।
एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा:
“मातृत्व अवकाश से महिलाओं को वंचित करना न केवल उनकी गरिमा का अपमान है, बल्कि यह संविधान के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।”
यह फैसला महिलाओं के प्रति न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है और कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला
मातृत्व अवकाश और चाइल्ड केयर लीव (CCL) दो अलग-अलग अधिकार हैं।
महिला कर्मचारी को उसके जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता, भले ही उसने पहले पति के बच्चों के लिए CCL ली हो।
मातृत्व अवकाश कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार है, जो सेंट्रल सिविल सर्विसेज (CCS) लीव रूल्स, 1972 के तहत दिया जाता है।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
इस फैसले का सामाजिक प्रभाव दूरगामी होगा। यह महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करेगा और कार्यस्थलों पर समानता की दिशा में परिवर्तन लाएगा। नियोक्ताओं को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि मातृत्व अवकाश के नियम सभी महिलाओं पर समान रूप से लागू हों। इसके अलावा, यह फैसला समाज में मातृत्व की गरिमा और सम्मान को भी बढ़ावा देगा।
कानूनी तौर पर, यह निर्णय नियोक्ताओं और संस्थानों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि वे महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। साथ ही, यह महिलाओं के लिए न्यायालय पहुंचने का एक मजबूत आधार भी प्रदान करता है।
चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
हालांकि Supreme Court का फैसला सराहनीय है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार, संस्थान और समाज को मिलकर काम करना होगा। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं तक इस अधिकार की पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, जागरूकता अभियान चलाकर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति शिक्षित करना भी आवश्यक है।