श्रीहरिकोटा, 30 जुलाई 2025: भारत और अमेरिका की ऐतिहासिक साझेदारी के तहत विकसित किया गया अब तक का सबसे महंगा और सबसे पावरफुल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट ‘निसार’ (NISAR – NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) को आज शाम 5:40 बजे सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया गया। इस हाई-टेक सैटेलाइट को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से ISRO के GSLV-F16 रॉकेट के ज़रिए छोड़ा गया।

₹12,500 करोड़ की लागत से बना निसार: 97 मिनट में पूरी पृथ्वी का एक चक्कर

निसार मिशन पर लगभग 1.5 बिलियन डॉलर (करीब 12,500 करोड़ रुपए) की लागत आई है। इसे पोलर सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट में स्थापित किया गया है, जो धरती से लगभग 743 किलोमीटर ऊपर स्थित है। यह सैटेलाइट हर 97 मिनट में पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाएगा और 12 दिनों में लगभग पूरी धरती को स्कैन कर लेगा।

निसार क्या है? | NISAR सैटेलाइट की परिभाषा

‘NISAR’ का पूरा नाम है NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar. यह दुनिया का पहला ऐसा अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है जो दो अलग-अलग रडार बैंड (L-बैंड और S-बैंड) का एक साथ उपयोग करता है।

इसमें एक 12 मीटर चौड़ा गोल्ड प्लेटेड रडार एंटीना है, जो एक 9 मीटर लंबी बूम पर फिट किया गया है। यह तकनीक NASA के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (JPL) ने डिजाइन की है।

निसार के 4 अहम चरण: कैसे काम करता है यह सैटेलाइट?

चरण विवरण
1. लॉन्च चरण सैटेलाइट को GSLV-F16 के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया।
2. डिप्लॉयमेंट चरण अंतरिक्ष में सैटेलाइट के एंटीना और उपकरणों को धीरे-धीरे खोलना।
3. कैलिब्रेशन चरण उपकरणों की सटीकता और स्थिरता की जांच करना।
4. ऑपरेशनल चरण पूरी तरह सक्रिय होकर पृथ्वी के आंकड़े जुटाना और साझा करना।

निसार मिशन का उद्देश्य है — धरती की सतह, वातावरण, समुद्री क्षेत्रों और पारिस्थितिक तंत्र में हो रहे सूक्ष्म बदलावों को सटीक रूप से पकड़ना। इसके मुख्य लक्ष्य हैं:

1. जमीन और बर्फ के बदलावों पर नज़र

  • ग्लेशियरों का पिघलना

  • भू-धंसाव (Land Subsidence)

  • ज्वालामुखीय गतिविधियाँ

2. पारिस्थितिक तंत्र की निगरानी

  • जंगलों की कटाई

  • कृषि भूमि में बदलाव

  • वनों की संरचना

3. समुद्री परिवर्तन

  • समुद्री धाराएं

  • तटीय क्षरण

  • तूफानों और सुनामी के असर

क्यों खास है निसार: पारंपरिक सैटेलाइट्स से कैसे अलग?

पारंपरिक सैटेलाइट्स बादलों, घने जंगलों या रात के समय स्पष्ट तस्वीरें नहीं ले सकते, जबकि निसार में है:

  • हर मौसम में काम करने की क्षमता

  • घने जंगलों और धुएं के आर-पार देखने की क्षमता

  • रात में भी पृथ्वी की निगरानी

  • रियल-टाइम में सेंटीमीटर स्तर तक के बदलाव को पकड़ने की क्षमता

 

एल-बैंड और एस-बैंड रडार: कैसे काम करते हैं?

रडार वेवलेंथ विशेषता
L-बैंड (NASA) 24 सेमी मोटी सतहों में गहराई तक देखने में सक्षम
S-बैंड (ISRO) 9 सेमी सतह पर हो रहे छोटे बदलावों की निगरानी में बेहतर

इन रडार्स के सिग्नल धरती की सतह से टकराकर वापस लौटते हैं, जिससे सतह के बदलावों का सटीक आकलन किया जा सकता है।

धरती के रंगों से समझिए बदलाव

निसार धरती की सतह पर आए बदलावों को रंगों में दिखाएगा:

  • 🟢 हरा: धरती कुछ सेंटीमीटर ऊपर उठी

  • 🔴 लाल: धरती 15 सेमी तक ऊपर उठी

  • 🔵 नीला: धरती कुछ सेंटीमीटर नीचे धंसी

  • 🟣 पर्पल: धरती 10 सेमी तक नीचे धंसी

कौन-कौन करेगा इसका उपयोग?

  • वैज्ञानिक और पर्यावरणविद

  • आपदा प्रबंधन एजेंसियां

  • कृषि और वन विभाग

  • जलवायु परिवर्तन पर काम कर रही संस्थाएं

महत्‍वपूर्ण: निसार मिशन का डेटा ओपन-सोर्स होगा, यानी पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसे फ्री में एक्सेस कर सकेंगे।

भारत-अमेरिका सहयोग की मिसाल

निसार मिशन भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग की नई ऊंचाई को दर्शाता है। NASA और ISRO दोनों ने अपने सर्वोत्तम तकनीकी संसाधन और वैज्ञानिक इस मिशन में लगाए।

संस्था योगदान
NASA L-बैंड रडार, JPL बूम सिस्टम, लॉन्च से पहले टेस्टिंग
ISRO S-बैंड रडार, सैटेलाइट प्लेटफॉर्म, GSLV-F16 लॉन्च

निसार सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं, बल्कि यह आने वाले दशकों के लिए पृथ्वी की निगरानी की रीढ़ बन जाएगा। जलवायु संकट, कृषि की स्थिति, प्राकृतिक आपदाएं और पृथ्वी के सूक्ष्म परिवर्तन अब पहले से कहीं ज्यादा सटीकता से समझे जा सकेंगे।

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