नई दिल्ली । 13 जून की सुबह, जब दुनिया अपने रोज़मर्रा की ज़िंदगी में व्यस्त थी, तभी इज़रायल ने ऑपरेशन “Rising Lion” नाम से ईरान पर एक व्यापक और योजनाबद्ध हमला किया। यह हमला सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, बल्कि पिछले कई वर्षों से चले आ रहे गुप्त तनावों और आरोप-प्रत्यारोपों की खुली घोषणा थी।
इस ऑपरेशन में ईरान के परमाणु कार्यक्रम, मिसाइल निर्माण इकाइयों, और सैन्य शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाया गया। ईरान के लिए यह एक ऐसा झटका था, जिसकी तुलना वर्ष 2020 में जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या से की जा रही है।
ऑपरेशन “राइजिंग लायन” क्या है?
इज़रायल की वायुसेना द्वारा चलाया गया यह ऑपरेशन एक सर्जिकल स्ट्राइक से कहीं ज़्यादा था। सूत्रों के अनुसार, इसमें लगभग 200 फाइटर जेट्स, ड्रोन यूनिट्स, और साइबर वारफेयर टैक्टिक्स का उपयोग किया गया। प्रमुख लक्ष्यों में शामिल थे:
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नटांज और फोर्डो स्थित यूरेनियम संवर्धन केंद्र
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खोंदाब मिसाइल इकाई, जो बैलिस्टिक मिसाइल का केंद्र है
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रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के मुख्यालय और वरिष्ठ अधिकारियों के आवास
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सैन्य रेडार और कम्युनिकेशन सेंटर
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान दिया:
“हमने उन ठिकानों को निशाना बनाया है जो हमारे अस्तित्व को सीधा खतरा दे रहे थे। यह सिर्फ आत्मरक्षा है, आक्रामकता नहीं।”
जानमाल की क्षति: बड़ा झटका ईरान को
इस हमले में ईरान की सैन्य और वैज्ञानिक संरचना को गहरा आघात लगा है। पुष्टि के अनुसार:
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मेजर जनरल होसैन सलामी – IRGC प्रमुख, मारे गए
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मेजर जनरल मोहम्मद बघेरी – चीफ़ ऑफ जनरल स्टाफ, मारे गए
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परमाणु वैज्ञानिक फेरैदून अब्बासी और मोहम्मद मेहदी तेहरानची – मारे गए
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20+ सैनिक, और 10 तकनीकी विशेषज्ञ भी हमलों में हताहत हुए
इन मौतों से ईरान की रणनीतिक क्षमता को गहरी चोट पहुंची है, विशेष रूप से उसका यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम अब ठहरने की कगार पर है।
ईरान की प्रतिक्रिया: क्रांति के स्वर
ईरान ने इन हमलों को “युद्ध की घोषणा” माना है। तेहरान में आपातकाल घोषित किया गया, सभी उड़ानें रद्द कर दी गईं और सीमाओं पर सेना तैनात कर दी गई है। सुप्रीम लीडर आयातुल्लाह अली खामेनेई ने तीव्र प्रतिक्रिया में कहा:
“इस हमले का जवाब ईरान की धरती तक सीमित नहीं रहेगा। इस्राइल ने अपनी कब्र खोदी है।”
इसके तुरंत बाद, ईरान ने लगभग 100+ ड्रोन्स इज़राइल की ओर लॉन्च किए, जिनमें से कई को Iron Dome ने नष्ट कर दिया लेकिन कुछ ने दक्षिणी इज़राइल में क्षति पहुंचाई।
इजरायली हमले की बड़ी बातें:
- इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल ने ईरान की मुख्य संवर्धन सुविधा, परमाणु विज्ञानियों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को निशाना बनाया।
- नेतन्याहू ने ईरान पर हमले के बाद साफ कर दिया कि ऑपरेशन राइजिंग लॉयन अभी खत्म नहीं हुआ है।
- इजरायली हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख हुसैन सलामी के मारे जाने की आशंका जताई जा रही है।
- अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि ईरान पर हुए इजरायली हमलों में अमेरिका शामिल नहीं है। साथ ही उन्होंने तेहरान को अमेरिकी हितों और कर्मियों को निशाना बनाने के खिलाफ चेतावनी दी।
- इजरायली रक्षा अधिकारी ने दावा किया कि हमलों में ईरान के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मोहम्मद बाघेरी और उनके कई शीर्ष सैन्य अधिकारी मारे जा चुके हैं।
- ईरान पर इजरायली हमले के बाद अमेरिका ने एक आपात बैठक बुलाई। डोनाल्ड ट्रंप की अध्यक्षता में यह बैठक हुई।
अमेरिका का रुख: दूरी बनाए रखना या परोक्ष समर्थन?
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रेस वार्ता में कहा:
“इज़रायल की यह कार्रवाई पूर्णतः एकतरफा थी। अमेरिका ने इसमें भाग नहीं लिया। हमारी प्राथमिकता क्षेत्र में अमेरिकी बलों की रक्षा है।”
हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका को इस ऑपरेशन की पूर्व जानकारी थी और उसने ‘मौन स्वीकृति’ दी थी। अमेरिका की यह रणनीति उसे सीधे संघर्ष में घसीटने से बचाती है, पर नैतिक रूप से इज़रायल के साथ खड़ा दिखाती है।
वैश्विक प्रतिक्रिया: “एक चिंगारी से लग सकती है आग”
- संयुक्त राष्ट्र
यूएन महासचिव ने दोनों पक्षों से संयम की अपील की है और मध्यस्थता की पेशकश की है। - यूरोपीय संघ
ब्रसेल्स ने “गंभीर चिंता” व्यक्त की और परमाणु समझौते की पुनर्बहाली की बात कही। - सऊदी अरब और UAE
दोनों देशों ने हमले पर चुप्पी साधी है, जो उनकी चुप सहमति को दर्शाता है। - चीन और रूस
इन देशों ने हमले की निंदा की है और इज़रायल को क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने वाला देश कहा है।
असर: बाज़ार, कूटनीति और रणनीति
बाज़ारों में उथल-पुथल
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तेल की कीमतें $110 प्रति बैरल तक पहुंचीं
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सोना ₹69,000 प्रति 10 ग्राम पर
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शेयर बाज़ारों में गिरावट
कूटनीतिक प्रयासों पर असर
इस हमले ने ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता (जो ओमान में हो रही थी) को ठप कर दिया है। भारत सहित कई देश बीच-बचाव की कोशिश में लगे हैं।
रणनीतिक स्थिति
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इज़राइल ने अपने सारे मिलिट्री बेस अलर्ट मोड पर रखे हैं
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इराक, सीरिया और यमन में इज़राइली दूतावास अस्थायी रूप से बंद
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हिज़्बुल्ला और हौथी विद्रोही समूहों से नए हमलों की आशंका
“युद्ध नहीं, सुरक्षा की लड़ाई”
यह संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच का नहीं है। यह उस भू-राजनीतिक उलझन की परिणति है जहां एक ओर परमाणु हथियारों की होड़ है, और दूसरी ओर अस्तित्व की लड़ाई। इज़राइल का डर वास्तविक है — एक ऐसा देश जो बार-बार सार्वजनिक मंचों पर उसके विनाश की बात करता है, अब यूरेनियम संवर्धन के अंतिम चरण में है।
वहीं ईरान भी यह संदेश देना चाहता है कि वो “कमज़ोर इस्लामिक राष्ट्र” नहीं रहा।
यह संघर्ष महाभारत की तरह प्रतीत हो रहा है, जहाँ दोनों पक्ष धर्म और अधर्म के अपने-अपने संस्करण लेकर खड़े हैं।
क्या यह एक लंबा युद्ध बनेगा?
“शांति तभी स्थायी होती है जब डर की नींव पर नहीं, समझ की भूमि पर खड़ी हो।”
अब यह देखना होगा कि क्या यह एक सीमित सैन्य ऑपरेशन रहेगा या फिर मध्य-पूर्व के पूर्ण युद्ध में बदल जाएगा। भारत जैसे देशों की भूमिका अब और महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि दोनों देशों के साथ उसके संबंध हैं।
आने वाले 72 घंटे इस पूरे घटनाक्रम की दिशा तय करेंगे। दुनिया एक बार फिर युद्ध की दहलीज़ पर खड़ी है — अब देखना यह है कि अगला कदम कौन उठाता है।