Iran और इज़राइल के बीच छिड़ा युद्ध आज अपने चरम पर है। आज ईरान ने Shahed ड्रोन्स लॉन्च किए, जिनका मुख्य निशाना इज़राइल के दक्षिणी और केंद्रीय इलाके थे। इस बार ईरान ने “Fattah‑1” हाइपरसोनिक मिसाइल का दावा किया जो Mach 13+ की स्पीड से चलने वाली बताई जा रही है।
हालांकि, इज़राइल के “Iron Dome”, “David’s Sling” और “Arrow‑3” जैसे एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम ने 90% से अधिक मिसाइलों को हवा में ही निष्क्रिय कर दिया। मगर चिंता की बात यह है कि इज़राइली रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उनके पास Arrow‑3 इंटरसेप्टर का स्टॉक अब सिर्फ 12 दिनों के लिए बचा है।
इज़राइल + अमेरिका की सामूहिक शक्ति
इज़राइल और अमेरिका का सैन्य गठजोड़ आधुनिक युद्ध की परिभाषा को नया आकार देता है। इज़राइल के पास 75 F‑15, 196 F‑16 और 39 F‑35I जैसे स्टेल्थ फाइटर जेट्स हैं, जो हवा में निर्णायक वर्चस्व स्थापित करते हैं। इसके साथ ही Heron TP और MQ‑9 Reaper जैसे एडवांस्ड ड्रोन युद्ध के हर पल पर निगरानी रखते हैं। इन जेट्स को समर्थन मिलता है अमेरिका से आने वाली उन्नत मिसाइल डिफेंस टेक्नोलॉजी का — जिसमें Iron Dome (कम दूरी), David’s Sling (मध्यम दूरी) और Arrow‑2/3 (लंबी दूरी) जैसे सिस्टम शामिल हैं। हालांकि, चिंता का विषय यह है कि Arrow‑3 का स्टॉक सिर्फ 12 दिन के लिए बचा है, जो इस युद्ध को एक निर्णायक टाइमलाइन में धकेलता है।
अमेरिका की ओर से THAAD और Patriot मिसाइल सिस्टम के साथ-साथ B‑2 बंकर बस्टर बमवर्षकों की तैनाती ने युद्ध में गहराई तक प्रहार की क्षमता जोड़ दी है। GPS-गाइडेड JDAM बम, स्टील्थ हमले और सर्जिकल एयरस्ट्राइक क्षमता इज़राइल को शत्रु के सबसे छिपे हुए ठिकानों तक पहुंचने की ताक़त देती है। इस गठजोड़ को मजबूती मिलती है अमेरिका-इज़राइल के साझा सैटेलाइट इंटेलिजेंस नेटवर्क से, जो हर लक्ष्य को फोकस्ड और डेटा-ड्रिवन ऑपरेशन में तब्दील करता है। कुल मिलाकर, यह जुगलबंदी तकनीकी श्रेष्ठता और संसाधनों के संतुलित मेल का अभूतपूर्व उदाहरण है।
ईरान के हथियार: संख्या और रणनीतिक ताक़त
Iran के पास बड़ी संख्या में हथियार हैं, जिनमें Shahab‑3, Ghadr‑1 और Sejjil जैसी लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें (1300–4000 किमी) शामिल हैं। हाल ही में उसने Fattah‑1 और 2 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलें (Mach 13+) भी पेश की हैं। क्रूज़ मिसाइलें जैसे Emad और Kheibar Shekan इज़राइल के उत्तरी हिस्सों को निशाना बना चुकी हैं।
Shahed‑136 और Qaher‑313 जैसे ड्रोन ईरान की आत्मघाती ड्रोन क्षमताओं को दर्शाते हैं। वायु रक्षा में उसके पास S‑300 और Bavar‑373 जैसे सिस्टम हैं। ज़मीनी ताक़त में पुराने T‑62 टैंक और BMP वाहन, और समुद्र में 17 सबमरीन व 68 नौकाएं उसकी रणनीतिक मौजूदगी को मजबूत करती हैं। हालांकि, इन सबके बीच तकनीकी पिछड़ापन उसकी सबसे बड़ी चुनौती है।
कौन है किसके साथ? वैश्विक खेमेबंदी का संतुलन
इस युद्ध में वैश्विक समर्थन एकतरफा नहीं बल्कि रणनीतिक रूप से विभाजित है, जहां दोनों पक्षों को अपने-अपने हितों के अनुसार सीमित लेकिन अहम समर्थन मिल रहा है।
इज़राइल को सबसे मज़बूत समर्थन अमेरिका से मिल रहा है, जो उसे हथियार, इंटेलिजेंस, लॉजिस्टिक्स और कूटनीतिक कवच मुहैया करवा रहा है। इसके साथ-साथ ब्रिटेन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी सैन्य तैयारी को सहारा दे रहे हैं। कुछ गुल्फ देश जैसे सऊदी अरब और यूएई, जो पहले इज़राइल से दूरी बनाए रखते थे, अब ईरान के विस्तारवाद से चिंतित होकर चुपचाप उसके साथ खड़े हैं।
वहीं दूसरी ओर, ईरान को रूस से तकनीकी और सामरिक स्तर पर सहयोग मिला है, जिसमें मिसाइल तकनीक, ड्रोन और सैटेलाइट सहयोग शामिल है, भले ही रूस खुलकर युद्ध में न उतरे। चीन भी ईरान के साथ व्यापारिक रिश्तों और ऊर्जा-सुरक्षा के लिहाज़ से खड़ा है और कूटनीतिक रूप से संतुलन बनाए हुए है। साथ ही ईरान के पारंपरिक सहयोगी जैसे हिज़बुल्लाह और हौथी गुट, भले ही फिलहाल शांत हैं, पर जरूरत पड़ने पर क्षेत्रीय मोर्चों पर सक्रिय हो सकते हैं।
कुल मिलाकर, यह एक दो-ध्रुवीय खेमेबंदी है — जहां इज़राइल को खुला पश्चिमी समर्थन मिल रहा है और ईरान को छाया में पूर्वी सहयोग, जिससे जंग का संतुलन तकनीक बनाम संख्या में बंटा हुआ नज़र आता है।
रणनीति की लड़ाई: मिसाइलें बनाम माइक्रोचिप्स
Iran की रणनीति है “saturation attacks”, यानी संख्या के बल पर डिफेंस सिस्टम को थकाना। वहीं इज़राइल और अमेरिका की रणनीति है “precision and interception”, जहां हर मिसाइल को एक सटीक डिफेंस जवाब मिलता है।
ड्रोन, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और GPS-गाइडेड हमले इज़राइल को वो बढ़त देते हैं जो ईरान के पास नहीं है। दूसरी तरफ, ईरान के पास गुप्त बंकर, मोबाइल लॉन्चर और “multi-layered launch sites” हैं, जो उसे तेजी से जवाब देने की शक्ति देते हैं।
क्या ईरान टिक पाएगा?
Iran टिक सकता है अगर उसकी हाइपरसोनिक मिसाइलें इज़राइली डिफेंस को भेद सकें, मिसाइल स्टॉक लगातार बना रहे, सहयोगी गुट सक्रिय हों और अमेरिका प्रत्यक्ष युद्ध में न उतरे।
लेकिन अगर इज़राइल लगातार सर्जिकल स्ट्राइक करता रहा, अमेरिका गहराई तक हमले करे और वैश्विक स्तर पर ईरान को अलग-थलग किया गया, तो उसकी स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जाएगी।
यह युद्ध किसका है – मिसाइलों का या माइंड का?
यह लड़ाई सिर्फ मिसाइलों की नहीं है — यह युद्ध है रणनीति, इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी का। ईरान अगर अपने मिसाइल स्टॉक और आत्मविश्वास के साथ लंबी दूरी तक टिके रहने की रणनीति अपनाता है, तो वह इज़राइल को थकाने में सक्षम हो सकता है। पर यदि तकनीकी असमानता और डिफेंस सिस्टम की ताक़त हावी रही, तो इज़राइल और अमेरिका का गठबंधन अंततः भारी पड़ेगा।