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भारत अगले चार वर्षों में 52 सैन्य उपग्रह लॉन्च करने की योजना बना रहा है, पहला लॉन्च अप्रैल 2026 में और पूर्ण तैनाती 2029 तक।
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यह योजना ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों से प्रेरित है, जिसने आधुनिक युद्ध में अंतरिक्ष-आधारित निगरानी के महत्व को उजागर किया।
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उपग्रह सीमाओं की वास्तविक समय निगरानी और लंबी दूरी की मिसाइलों और रॉकेट लांचर की सटीकता में सुधार करेंगे।
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परियोजना की लागत 26,986 करोड़ रुपये है, जिसमें ISRO 21 उपग्रह और तीन निजी कंपनियां 31 उपग्रह लॉन्च करेंगी।
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यह कदम चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य अंतरिक्ष क्षमताओं का जवाब है
भारत की 52 Military satellites की लॉन्चिंग की योजना देश की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। ऑपरेशन सिंदूर ने अंतरिक्ष-आधारित निगरानी के महत्व को रेखांकित किया, और ये नए उपग्रह सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ लंबी दूरी की मिसाइलों और रॉकेट लांचर की सटीकता को बढ़ाएंगे। यह परियोजना न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी, बल्कि भारत को वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करेगी।
PIONEER DIGITAL DESK
ऑपरेशन सिंदूर में चीन ने पाकिस्तान की खुुलकर सैन्य मदद की। यही नहीं इस दौरान चीन ने भारत की सैन्य क्षमताओं को भी परख लिया है। चीन की इसी हरकत सेे साधभारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, जिसमें अगले चार वर्षों में 52 सैन्य उपग्रहों को लॉन्च किया जाएगा। यह परियोजना, जिसे अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS) कार्यक्रम के तीसरे चरण के तहत लागू किया जा रहा है, सीमाओं की सुरक्षा को बढ़ाने और लंबी दूरी की मिसाइलों की सटीकता में सुधार करने के लिए डिज़ाइन की गई है। पहला उपग्रह अप्रैल 2026 में लॉन्च होगा, और सभी उपग्रह 2029 तक तैनात हो जाएंगे।
ऑपरेशन सिंदूर की भूमिका
7 मई 2025 को हुए ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की अंतरिक्ष-आधारित निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित किया। यह ऑपरेशन 22 अप्रैल 2025 को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में शुरू किया गया था, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराया और नौ लक्ष्यों पर मिसाइल और हवाई हमले किए। इस दौरान, भारत ने अपने कार्टोसैट और रिसैट उपग्रहों के साथ-साथ विदेशी वाणिज्यिक उपग्रहों का उपयोग किया, जिसने वास्तविक समय की खुफिया जानकारी और लक्ष्यीकरण में मदद की।
मिसाइल सटीकता में सुधार
ये नए उपग्रह लंबी दूरी की मिसाइलों और रॉकेट लांचर की सटीकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वे उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी, नेविगेशन डेटा, और सुरक्षित संचार लिंक प्रदान करेंगे, जो मिसाइलों को सटीक लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायता करेंगे। इसके अलावा, उपग्रहों द्वारा प्रदान की जाने वाली मौसम संबंधी जानकारी मिसाइल प्रक्षेपवक्र को समायोजित करने में मदद करेगी।
क्षेत्रीय सुरक्षा संदर्भ
यह योजना विशेष रूप से चीन की बढ़ती सैन्य अंतरिक्ष क्षमताओं का जवाब है, जिसने 2024 तक 1,000 से अधिक उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिनमें 360 खुफिया, निगरानी और पहचान (ISR) के लिए हैं। भारत का लक्ष्य क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना और अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना है।
26,986 करोड़ होंगे खर्च
यह परियोजना, जिसकी लागत 26,986 करोड़ रुपये है, अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS) कार्यक्रम के तीसरे चरण का हिस्सा है और इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और तीन निजी कंपनियों के सहयोग से लागू किया जा रहा है।
2029 तक पूरा होगा प्रोजेक्ट
इस योजना के तहत, ISRO 21 उपग्रहों का निर्माण और लॉन्च करेगा, जबकि शेष 31 उपग्रह तीन निजी कंपनियों द्वारा विकसित और तैनात किए जाएंगे। ये उपग्रह कम पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit, LEO) और भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit) में तैनात होंगे, जो वास्तविक समय में निगरानी और उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी प्रदान करेंगे। पहला उपग्रह अप्रैल 2026 में लॉन्च होगा, और सभी उपग्रह 2029 तक पूरी तरह से तैनात हो जाएंगे। यह परियोजना अक्टूबर 2024 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट समिति द्वारा स्वीकृत की गई थी।
विवरण |
जानकारी |
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कुल उपग्रह |
52 |
लॉन्च पूर्ण होने का वर्ष |
2029 |
पहला लॉन्च |
अप्रैल 2026 |
लागत |
26,986 करोड़ रुपये |
ISRO उपग्रह |
21 |
निजी कंपनियों के उपग्रह |
31 |
कक्षा |
कम पृथ्वी कक्षा (LEO) और भू-स्थिर कक्षा |
कार्यक्रम चरण |
अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS) चरण 3 |
स्वीकृति तिथि |
अक्टूबर 2024 |
कवरेज क्षेत्र |
चीन, पाकिस्तान, भारतीय महासागर क्षेत्र |
उपग्रहों की तकनीकी विशेषताएं और मिसाइल सटीकता में योगदान
नए सैन्य उपग्रह उन्नत तकनीकों से लैस होंगे, जिनमें उच्च-रिज़ॉल्यूशन कैमरे, सेंसर, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) शामिल हैं। ये उपग्रह निम्नलिखित तरीकों से लंबी दूरी की मिसाइलों और रॉकेट लांचर की सटीकता को बढ़ाएंगे:
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लक्ष्यीकरण डेटा: उपग्रह उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी प्रदान करेंगे, जो संभावित लक्ष्यों का सटीक पता लगाने में मदद करेंगे। यह विशेष रूप से हाइपरसोनिक मिसाइलों जैसे तेजी से चलने वाले लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है।
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नेविगेशन और मार्गदर्शन: उपग्रह नेविगेशन डेटा प्रदान करेंगे, जो लंबी दूरी की मिसाइलों को उनके लक्ष्य तक सटीक रूप से पहुंचाने में सहायता करेंगे।
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सुरक्षित संचार: उपग्रह सुरक्षित संचार लिंक सुनिश्चित करेंगे, जिससे मिसाइल प्रणालियों को वास्तविक समय में आदेश प्राप्त हो सकें और प्रक्षेपवक्र को समायोजित किया जा सके।
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निगरानी और पहचान: उपग्रह दुश्मन की गतिविधियों और स्थिति की निगरानी करेंगे, जिससे मिसाइल हमलों को समायोजित करने में मदद मिलेगी।
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मौसम डेटा: उपग्रह मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करेंगे, जो वायुमंडलीय स्थितियों के आधार पर मिसाइल प्रक्षेपवक्र को समायोजित करने में सहायक होगी।
पूर्व ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि हाइपरसोनिक मिसाइलों को रोकना अत्यंत कठिन है, और इसके लिए सैकड़ों उपग्रहों की एक कांस्टेलेशन की आवश्यकता है जो निरंतर निगरानी प्रदान करे। ये उपग्रह ऑप्टिकल, नाइट विज़न, थर्मल इमेजिंग, रडार इमेजिंग, मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग जैसी विविध क्षमताओं से लैस होंगे। विशाल डेटा को संसाधित करने के लिए AI-आधारित उपकरणों का उपयोग किया जाएगा, जो जमीनी स्तर पर त्वरित निर्णय लेने में मदद करेंगे।
क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ
यह परियोजना चीन की बढ़ती सैन्य अंतरिक्ष क्षमताओं का जवाब है। 2024 तक, चीन ने 1,000 से अधिक उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिनमें से 360 खुफिया, निगरानी और पहचान (ISR) के लिए समर्पित हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान ने 2018 में PRSS-1 उपग्रह लॉन्च किया था, जो उसकी सैन्य निगरानी क्षमताओं को बढ़ाता है। भारत का यह कदम क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने और अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।
निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
इस परियोजना में निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। तीन निजी कंपनियां 31 उपग्रहों का निर्माण और तैनाती करेंगी, जिससे प्रक्रिया को तेज करने और अतिरिक्त विशेषज्ञता का लाभ उठाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, भारत ने फ्रांस के साथ जनवरी 2024 में रक्षा अंतरिक्ष सहयोग पर एक इरादतनामा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और क्षमताओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।
सैन्य अंतरिक्ष डॉक्ट्रिन
भारत सरकार एक व्यापक सैन्य अंतरिक्ष डॉक्ट्रिन तैयार कर रही है, जो अगले कुछ महीनों में अंतिम रूप ले लेगी। यह डॉक्ट्रिन अंतरिक्ष के सैन्यीकरण के बढ़ते खतरों को संबोधित करेगी और भारत की सैन्य रणनीति को और मजबूत करेगी। रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (Defence Space Agency, DSA) इस परियोजना का नेतृत्व कर रही है, जो एकीकृत रक्षा स्टाफ (Integrated Defence Staff, IDS) के तहत काम करती है।