राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (NATIONAL SECURITY STRATEGY)भारत के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है, जो न केवल रणनीतिक स्पष्टता और समन्वय प्रदान करेगी, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगी। NSS न बनने से रणनीतिक अस्पष्टता, संसाधनों के अप्रभावी उपयोग, और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता में कमी जैसे नुकसान हो रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि देश के पॉलिसी मेकर्स इस दिशा में मजबूत इच्छा शक्ति के साथ आगे बढकर ठोस प्रयास करें। नीति निर्माण में देरी के पीछे राजनीतिक सहमति, संवेदनशील जानकारी, और लचीलेपन की चिंता जैसे कारण हैं। सुझाव के रूप में, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और रक्षा योजना समिति जैसे निकायों को सक्रिय रूप से NSS निर्माण में शामिल करना चाहिए, विशेषज्ञ परामर्श लेना चाहिए, और एक गैर-संवेदनशील संस्करण को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि जनता में विश्वास बढ़े।
PIONEER DIGITAL DESK
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (National Security Strategy – NSS) किसी भी देश के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो राष्ट्रीय हितों की रक्षा, बाहरी और आंतरिक खतरों से निपटने, और रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करती है। भारत जैसे जटिल भू-राजनीतिक स्थिति वाले देश के लिए यह नीति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता क्यो है इन पांंच बिंदुओं के जरिए समझते हैं-
-
जटिल भू-राजनीतिक स्थिति : भारत की सीमाएँ पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के साथ अशांत और विवादित हैं, जो परमाणु शक्ति संपन्न हैं। इसके अलावा, पड़ोसी देशों (जैसे अफगानिस्तान, म्यांमार) में अस्थिरता और आतंकवाद भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। वैश्विक स्तर पर, यूक्रेन और गाजा जैसे संघर्षों और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं ने रणनीतिक योजना की आवश्यकता को और बढ़ा दिया है।
-
आतंकवाद और आंतरिक खतरे : भारत को आतंकवाद (जैसे 2008 का मुंबई हमला, 2016 का पुलवामा हमला) और मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला, और नशीली दवाओं की तस्करी जैसे गैर-पारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ता है। एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इन खतरों से निपटने के लिए समन्वित दृष्टिकोण प्रदान कर सकती है, जिसमें राजनयिक, सैन्य, आर्थिक, और सूचनात्मक उपाय शामिल हों।
-
रणनीतिक स्पष्टता और समन्वय : NSS राष्ट्रीय शक्ति के विभिन्न उपकरणों (राजनयिक, सैन्य, आर्थिक, और सूचनात्मक) को एकीकृत करती है और नीति-निर्माताओं को स्पष्ट दिशानिर्देश देती है। यह सेना, सरकार, और अन्य हितधारकों के बीच तालमेल को बढ़ावा देती है, जो वर्तमान में भारत में कमी के रूप में देखा जाता है।
-
वैश्विक मानक : प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, और यूनाइटेड किंगडम नियमित रूप से अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों की समीक्षा और अद्यतन करती हैं। भारत में ऐसी नीति का अभाव इसे वैश्विक मंच पर रणनीतिक विश्वसनीयता प्रदान करने में पीछे छोड़ता है।
-
दीर्घकालिक योजना : NSS दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौतियों (जैसे साइबर सुरक्षा, पर्यावरणीय खतरे, और प्रौद्योगिकी युद्ध) के लिए एक ढांचा प्रदान करती है, जो भारत जैसे तेजी से बदलते देश के लिए महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के निर्माण में देरी के क्या हैं कारण
भारत ने कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने का प्रयास किया, लेकिन अब तक यह दस्तावेज़ तैयार नहीं हो सका। इसके प्रमुख कारण ये हैं-
-
संस्थागत समन्वय की कमी : 1998 में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) की स्थापना के बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा नीति तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन यह कार्य अधूरा रहा। 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की अध्यक्षता में रक्षा योजना समिति (DPC) का गठन किया गया, जिसे NSS और राष्ट्रीय रक्षा नीति तैयार करने का कार्य सौंपा गया। हालांकि, इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
-
जटिल प्रक्रिया : NSS के निर्माण के लिए विभिन्न मंत्रालयों (रक्षा, गृह, विदेश, वित्त), विशेषज्ञों, और हितधारकों के बीच व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में समय और समन्वय की कमी बाधा बनती है।
-
.संवेदनशील जानकारी का जोखिम : कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि NSS को सार्वजनिक करने से संवेदनशील जानकारी विरोधियों तक पहुँच सकती है, जिसका दुरुपयोग हो सकता है। इससे नीति निर्माण में अनिच्छा देखी जाती है।
-
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी : नीति निर्माण के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो अक्सर अल्पकालिक राजनीतिक प्राथमिकताओं के कारण प्रभावित होती है।
-
लचीलेपन की चिंता : कुछ नीति-निर्माता मानते हैं कि एक औपचारिक NSS लचीलापन कम कर सकती है, क्योंकि इसे नियमित समीक्षा और संशोधन की आवश्यकता होती है, जो भारत जैसे गतिशील सुरक्षा परिदृश्य में चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
नीति नहीं बन पाने के नुकसान
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की अनुपस्थिति भारत के लिए कई रणनीतिक, परिचालन, और नीतिगत नुकसान पैदा करती है इसे इन छह बिंदुुओं में समझते हें –
-
रणनीतिक अस्पष्टता : NSS के अभाव में नीति-निर्माताओं और सैन्य बलों को स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं मिलते, जिससे रणनीतिक निर्णयों में असंगति आती है। उदाहरण के लिए, गलवान घाटी जैसी घटनाओं में त्वरित और समन्वित प्रतिक्रिया की कमी देखी गई। इससे भारत की रणनीतिक मंशा विरोधियों और सहयोगियों के लिए अस्पष्ट रहती है, जिससे विश्वसनीयता कम होती है।
-
संसाधनों का अप्रभावी उपयोग: बिना नीति के, रक्षा बजट और संसाधनों का आवंटन प्राथमिकता के आधार पर नहीं हो पाता। इससे सैन्य आधुनिकीकरण और क्षमता निर्माण में देरी होती है।
-
आतंकवाद और गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने में कमजोरी: आतंकवाद, साइबर हमले, और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे खतरों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की कमी रहती है। उदाहरण के लिए, मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए होता है, लेकिन इस पर व्यापक नीति का अभाव है।
-
अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता में कमी: वैश्विक शक्तियाँ अपनी NSS के माध्यम से रणनीतिक पारदर्शिता और जवाबदेही प्रदर्शित करती हैं। भारत में इसका अभाव वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को कमजोर करता है।
-
सैन्य और नागरिक तालमेल की कमी: NSS के बिना, सरकार और सैन्य बलों के बीच समन्वय में कमी रहती है, जिससे परिचालन दक्षता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, सैन्य रणनीति की समीक्षा में देरी के कारण सीमा पर तनाव को संभालने में कठिनाई होती है।
-
दीर्घकालिक जोखिम : साइबर सुरक्षा, पर्यावरणीय खतरे, और उभरती प्रौद्योगिकियों (जैसे ड्रोन, AI) जैसे नए खतरों के लिए दीर्घकालिक योजना का अभाव भारत को असुरक्षित बनाता है।