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नई दिल्ली। कनाडा के ओंटारियो में इस साल की G7 शिखर बैठक (G7 Summit 2025) का आगाज़ हो चुका है। दुनिया की सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाएं एक मंच पर जुटी हैं, और इस बार यह बैठक खास इसलिए भी है क्योंकि इसमें भारत के प्रधानमंत्री PM Modi को फिर से गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में आमंत्रित किया गया है।
इस समिट में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, और जापान तथा जर्मनी के शीर्ष प्रतिनिधि पहले ही पहुंच चुके हैं। खास बात यह है कि मोदी की कनाडाई प्रधानमंत्री पद के दावेदार मार्क कार्नी से यह पहली औपचारिक भेंट होगी।
क्या है G7 Summit?
G7, यानी “Group of Seven”, दुनिया के सात सबसे विकसित और लोकतांत्रिक औद्योगिक देशों का समूह है। इसमें शामिल हैं:
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अमेरिका
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कनाडा
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ब्रिटेन
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फ्रांस
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जर्मनी
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इटली
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जापान
यह समूह 1975 में बनाया गया था और तब इसे G6 कहा जाता था। 1976 में कनाडा के जुड़ने से यह G7 बना। बाद में 1997 में रूस को भी शामिल किया गया और यह G8 बना, लेकिन 2014 में क्राइमिया विवाद के चलते रूस को बाहर कर दिया गया।
G7 का उद्देश्य वैश्विक आर्थिक स्थिरता, लोकतंत्र, मानवाधिकार, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आपसी सहयोग और नीतिगत समन्वय करना है। इसका कोई स्थायी सचिवालय नहीं है, और हर साल किसी एक सदस्य देश की अध्यक्षता में शिखर सम्मेलन आयोजित होता है।
कनाडा G7 Summit 2025: क्या है इस बार खास?
2025 का शिखर सम्मेलन कनाडा के ओंटारियो प्रांत में आयोजित किया जा रहा है, और इसकी थीम है: “Shared Stability in a Shifting World” (बदलती दुनिया में साझा स्थिरता)। इस बार निम्न मुद्दे चर्चा के केंद्र में हैं:
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रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक सुरक्षा
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ईरान-इजराइल तनाव और परमाणु खतरा
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जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का वैश्विक नियंत्रण
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वैश्विक सप्लाई चेन की मजबूती
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भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे उभरते देशों के साथ सहयोग
PM Modi की भूमिका और संभावित मुलाकातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा कूटनीतिक लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार:
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PM Modi की कनाडा के संभावित भावी प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से पहली बार द्विपक्षीय बातचीत होनी है।
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PM Modi की डोनाल्ड ट्रम्प से भी मुलाकात संभावित है, खासकर “ऑपरेशन सिंदूर” के सफल नेतृत्व के बाद भारत की छवि और ट्रम्प की दक्षिण एशिया में नीति पर चर्चा हो सकती है।
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फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और इटली की मेलोनी के साथ भी भारत की रक्षा, ऊर्जा और जलवायु पर वार्ता तय मानी जा रही है।

भारत को G7 में क्यों बुलाया जाता है?
भारत अभी G7 का सदस्य नहीं है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसे गेस्ट कंट्री के रूप में लगातार आमंत्रित किया जा रहा है। इसके पीछे कई वजहें हैं:
1. भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था:
भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं भारत को वैश्विक विकास का इंजन मानती हैं।
2. सबसे बड़ा लोकतंत्र:
140 करोड़ की आबादी और मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली भारत को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बनाती है।
3. रणनीतिक संतुलन:
चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत को G7 में भागीदार बनाना पश्चिमी देशों के लिए अनिवार्य होता जा रहा है।
4. तकनीकी और जलवायु नेतृत्व:
भारत AI, डिजिटल टेक्नोलॉजी, हरित ऊर्जा और पर्यावरणीय मुद्दों पर वैश्विक मंच पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
G7 को भारत की क्यों जरूरत है?
G7 देशों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है – वैश्विक विश्वसनीयता और विविधता। भारत जैसी बड़ी शक्ति को शामिल करने से:
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G7 को अधिक प्रतिनिधित्व और प्रासंगिकता मिलेगी।
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विकासशील देशों की आवाज मंच पर सुनी जा सकेगी।
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एशिया में भरोसेमंद साझेदार के रूप में भारत का महत्व बढ़ेगा।
इसके अलावा, भारत रूस और पश्चिम के बीच संतुलन बनाने की स्थिति में है, जो आज की वैश्विक राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत के लिए G7 क्यों जरूरी?
1. वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा:
भारत को वैश्विक नीतियों पर अपनी राय रखने का अवसर मिलता है। इससे देश की कूटनीतिक ताकत बढ़ती है।
2. आर्थिक सहयोग और निवेश:
G7 के देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने से व्यापार, निवेश और तकनीकी सहयोग के नए रास्ते खुलते हैं।
3. जलवायु और ऊर्जा नीति:
भारत को वैश्विक जलवायु नीति में अपनी प्राथमिकताओं और जरूरतों को रखने का मौका मिलता है।
4. रणनीतिक गहराई:
भारत G7 के मंच का उपयोग दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक भूमिका को मजबूत करने में करता है।
G7 में भारत की स्थायी सदस्यता?
हालांकि अभी तक भारत को G7 का स्थायी सदस्य बनाने पर कोई औपचारिक चर्चा नहीं हुई है, लेकिन कई विशेषज्ञ और नेता यह मांग उठा चुके हैं कि G7 को G10 बनाकर भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को जोड़ना चाहिए। इससे यह संगठन अधिक संतुलित, समावेशी और आधुनिक बनेगा।