एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171, हादसे में 275 लोगों की जान चली गई, और विमान पूरी तरह से मलबे में तब्दील हो गया। हादसे के दृश्य इतने विकराल थे कि कई शव बुरी तरह जल चुके थे, कई क्षत-विक्षत और कुछ केवल अवशेषों के रूप में बचे थे। ऐसे में शवों की पहचान करना एक असंभव-सी चुनौती बन गया—लेकिन यही वह मोड़ था, जहां DNA विज्ञान ने मानवता को रोशनी दी। दुनियाभर में भीषण विमान हादसों में यह तकनीक पहले से ही मानक बन चुकी है।
DNA टेस्ट एक फॉरेंसिक प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के DNA को निकालकर उसकी तुलना किसी संदिग्ध, परिजन, या संदर्भ सैंपल से की जाती है, ताकि यह तय हो सके कि वह व्यक्ति कौन है, उसका संबंध किससे है, या उसका कोई जैविक लिंक है या नहीं।
पहचान की चुनौती: जब चेहरों से कुछ शेष नहीं रहा
हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंची राहत टीमों ने सबसे पहले मलबे से शवों को निकालना शुरू किया। कई शवों की हालत इतनी खराब थी कि न तो चेहरा पहचान में आ रहा था, न कपड़े बचे थे, और न ही कोई दस्तावेज। कुछ शव तो इतने जल चुके थे कि वे हड्डियों और राख का मिश्रण लग रहे थे।
ऐसे हालात में पारंपरिक तरीकों से (चेहरे, कपड़े, जूतों, गहनों आदि से) पहचान करना लगभग असंभव हो गया। और यहीं से शुरू होती है DNA जांच की वैज्ञानिक, संवेदनशील और कानूनी यात्रा।
DNA पहचान प्रक्रिया: विज्ञान के भरोसे न्याय की राह
1. सैंपल कलेक्शन की शुरुआत
घटना के तुरंत बाद, अहमदाबाद सिविल अस्पताल और गांधीनगर स्थित Forensic Science Laboratory (FSL) को सैंपल कलेक्शन का ज़िम्मा सौंपा गया।
करीब 250 से अधिक शवों से DNA नमूने एकत्र किए गए—इनमें हड्डी, दांत, रक्त या बाल के रूट शामिल थे। ये नमूने संभालकर विशेष लेबोरेट्री में भेजे गए। साथ ही, मृतकों के परिजनों से भी DNA सैंपल लिए गए—माता-पिता, संतान या भाई-बहन से। यह मिलान के लिए अनिवार्य था।
2. वैज्ञानिक टीम की व्यवस्था
DNA प्रोफाइलिंग के इस विशाल अभियान के लिए लगभग 40 वैज्ञानिकों की टीम गठित की गई, जो तीन शिफ्टों में लगातार 24 घंटे काम कर रही है। इन विशेषज्ञों ने सैंकड़ों सैंपल्स की प्रोसेसिंग करते हुए यह सुनिश्चित किया कि पहचान की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी हो।
जैसा कि एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया:
“कई शव इतने जल चुके थे कि केवल दांत या हड्डी से ही DNA प्राप्त किया जा सका। फिर भी हमारी टीम ने तकनीक के जरिए उन्हें पहचान दिलाने में सफलता पाई।”
3. पहचान और शव सुपुर्दगी की प्रक्रिया
पहले चार दिनों में लगभग 32 शवों की पहचान हो सकी, जिनमें से 14 शव परिजनों को सौंप दिए गए थे।
रिपोर्ट लिखे जाने तक, 92 शवों की DNA से पुष्टि हो चुकी थी, जिनमें से 47 शवों को उनके परिवारों को सौंप दिया गया है। हर शव को पूरी सुरक्षा के साथ, सील की गई बॉडी बैग्स में भेजा गया। उनके साथ मृत्यु प्रमाण-पत्र, DNA रिपोर्ट और सरकारी सहायता से जुड़े दस्तावेज़ भी दिए गए।
DNA की भूमिका: सिर्फ पहचान नहीं, एक सम्मान
DNA टेस्ट केवल वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इंसान को पहचान और सम्मान दिलाने का माध्यम है।बहुत से परिजनों ने बताया कि वे दिन-रात अस्पताल के चक्कर लगाते रहे, हर दिन सूचना बोर्ड पर नाम खोजते और हर DNA रिपोर्ट का इंतज़ार करते। कई मामलों में मृतकों के पास से मिले गहनों, घड़ियों या कपड़ों के आधार पर परिवारों को लगता था कि शव उनकी प्रियजन का है, लेकिन प्रशासन ने केवल DNA पुष्टि के बाद ही शव सौंपे। यह निर्णय शुरू में कठोर ज़रूर लगा, लेकिन अंततः यह गलती से पहचान होने से रोकने का सर्वोत्तम तरीका सिद्ध हुआ।
कानूनी और वित्तीय दृष्टिकोण से DNA का महत्त्व
DNA पहचान के बाद ही सरकार द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण-पत्र मिल सके। यही प्रमाण बीमा कंपनियों, बैंक खातों, संपत्ति, और सरकारी सहायता के लिए आवश्यक था। गुजरात सरकार ने मृतकों के परिजनों को ₹25 लाख, और केंद्र सरकार ने ₹10 लाख की राहत राशि देने की घोषणा की। इसके अलावा, कई विदेशी नागरिकों के मामले में उनके देशों की सरकारें भी सहयोग कर रही हैं—DNA रिपोर्ट को मान्यता देते हुए आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान कर रही हैं।
दुनियाभर के विमान हादसों में DNA की भूमिका
अहमदाबाद का हादसा कोई पहला मौका नहीं है जब DNA पहचान का सहारा लिया गया हो। दुनियाभर में भीषण विमान हादसों में यह तकनीक पहले से ही मानक बन चुकी है:
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1. Germanwings Flight 9525 (2015)
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कुल मृतक: 150 (अलबत्ता कोई जीवित बचे नहीं)
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DNA से पहचान: 78 अलग-अलग DNA स्ट्रैंड्स की पहचान हुई—वैराइटी ऑफ बॉडी पार्ट्स से
2. Ethiopian Airlines Flight 302 (2019)
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कुल मृतक: 157 यात्री एवं क्रू सदस्य
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DNA से पूरी पहचान: INTERPOL सहित 14 देशों ने मिलकर सभी 157 शवों की पुष्टि की
3. PIA Flight 8303 (Karachi, 2020)
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कुल मृतक: 97 (95 की पुष्टि चालक दल सहित)
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DNA से कितनी पहचान: प्रारंभ में 18 की, बाद में संख्या बढ़कर 53 हुई; कुल 92 शवों की पहचान, जिनमें से 89 शवों को परिजनों को सौंपा गया
4. Mangalore Air India Express Crash (2010)
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कुल मृतक: 158 लोग
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पहचान की स्थिति: शुरुआत में 136 शव पारंपरिक तरीकों से पहचाने गए, लेकिन अंतिम 22 शव DNA से जांचे गए—10 की पहचान सुनिश्चित हुई, बाकी 12 के संबंध परिजनों से मेल न खाए
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ब्लैक बॉक्स और DNA: हादसे की दो आंखें
इस हादसे में ब्लैक बॉक्स—फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR)—भी मिल गए हैं, जो हादसे की तकनीकी वजहों की जांच में सहायता कर रहे हैं।
जहाँ ब्लैक बॉक्स यह बताता है कि “हादसा क्यों हुआ?”, वहीं DNA यह तय करता है कि “हादसे में कौन-कौन मारा गया?” इन दोनों के मेल से ही किसी भी विमान दुर्घटना की पूर्ण और निष्पक्ष जांच संभव हो पाती है।
चुनौतियां और सुधार की ज़रूरत
DNA जांच जितनी उपयोगी है, उतनी ही जटिल भी। जल चुके अवशेषों से DNA निकालना कठिन है। भारत में FSL लैब्स की संख्या सीमित है और प्रशिक्षित वैज्ञानिकों की कमी एक बाधा है। ऐसे में सरकार को:
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हर राज्य में आधुनिक DNA लैब्स की स्थापना करनी चाहिए।
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एक सुसंगत SOP (Standard Operating Procedure) बनानी चाहिए, जिससे आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके।
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शव सौंपने की प्रक्रिया में मानसिक स्वास्थ्य सहायता केंद्र भी जोड़े जाएं ताकि परिजनों को काउंसलिंग मिल सके।
DNA सिर्फ विज्ञान नहीं, न्याय और श्रद्धा का सेतु है
अहमदाबाद विमान हादसे ने यह सिद्ध कर दिया कि जब मानवीय पहचान संभव न हो, तब विज्ञान हमें इंसानियत की राह दिखाता है। DNA जांच केवल शवों की पहचान नहीं, बल्कि परिजनों को अंतिम विदाई देने का अवसर देती है। यह प्रक्रिया वैज्ञानिक, संवेदनशील और न्यायपूर्ण है।
जैसे एक परिजन ने कहा:
“जब चेहरा न बचे, नाम तक मिट जाए, तब भी DNA कहता है—हां, यही वो था, जिसे आप प्यार करते थे।”
DNA परीक्षण आज भारत की आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है—और यही हमें भविष्य में बेहतर, मानवीय और वैज्ञानिक ढंग से त्रासदियों से निपटने में सहायता करेगा।