नई दिल्ली। 21 जुलाई की रात 9 बजे जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा दिया, तो पूरे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। इससे ठीक 11 दिन पहले, 10 जुलाई को वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए कहते हैं— “मैं सही समय पर रिटायर होऊंगा, अगस्त 2027 में, जब तक कोई दिव्य शक्ति हस्तक्षेप न करे।” लेकिन शायद वह “दिव्य शक्ति” सक्रिय हो चुकी थी, जिसने उन्हें समय से पहले पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
हालांकि उन्होंने इसकी वजह “स्वास्थ्य कारण” बताई, लेकिन राजनैतिक सूत्र और घटनाक्रम कुछ और कहानी बयां करते हैं। इस इस्तीफे के पीछे क्या सत्ता से असहमति, व्यक्तिगत नाराजगी, या रणनीतिक समीकरण है? यह कहानी सिर्फ एक पदत्याग की नहीं, बल्कि उन अनकहे संघर्षों और नई संभावनाओं की है जो भारत की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।
तीन घटनाएं जो इस्तीफे की भूमिका बनीं
1. शिवराज सिंह चौहान को मंच से कटघरे में खड़ा करना
3 दिसंबर 2024 को मुंबई में आयोजित कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक असामान्य कदम उठाया।
उन्होंने खुले मंच से केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल किया— “कृपया बताएं कि किसान से क्या वादा किया गया था, और क्यों नहीं निभाया गया?”
इस वक्तव्य ने भाजपा नेतृत्व और आरएसएस को असहज कर दिया। माना गया कि एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का इस तरह से मंत्रियों को लताड़ना पार्टी अनुशासन का उल्लंघन है। शिवराज ने भले कोई प्रतिक्रिया न दी हो, लेकिन बाद में सूत्रों के मुताबिक धनखड़ को पार्टी नेतृत्व की तरफ से स्पष्ट हिदायत दी गई कि भविष्य में ऐसा न हो।
2. महाभियोग प्रस्ताव पर अलग लाइन लेना
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जब लोकसभा में 150 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, तो यह उम्मीद थी कि राज्यसभा की कार्रवाई भी सत्ता पक्ष की पहल पर होगी। लेकिन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने विपक्षी दलों के 63 सांसदों से हस्ताक्षर लेकर प्रस्ताव की अलग लाइन बनाई।
इससे कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने नाखुशी जाहिर की। यह सत्ता और संवैधानिक पद के बीच सामंजस्य की कमी को उजागर करने वाला कदम माना गया। यह भी संकेत था कि उपराष्ट्रपति अब सरकार के नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं।
3. जेपी नड्डा से टकराव और PAC मीटिंग विवाद
21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को चर्चा की अनुमति दी गई, जबकि लोकसभा में राहुल गांधी को रोक दिया गया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस भेदभाव पर नाराजगी जताई और कहा— “केवल मेरी बात रिकॉर्ड पर ली जाए।”
बाद में PAC की बैठक में धनखड़ की गैरमौजूदगी की जानकारी न मिलने और नड्डा व रिजिजू के न आने से बैठक रद्द हो गई। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह की ओर से धनखड़ को “सख्त संदेश” दिए जाने की चर्चा सामने आई।
क्या इस्तीफे की स्क्रिप्ट पहले से लिखी जा चुकी थी?
धनखड़ के इस्तीफे से एक दिन पहले, 20 जुलाई को उनके घर एक भव्य पार्टी हुई थी। यह उनकी पत्नी सुदेश धनखड़ का जन्मदिन था, लेकिन उसमें सभी दलों के नेता, राज्यसभा स्टाफ और राज्यसभा टीवी कर्मियों को आमंत्रित किया गया था।
सूत्रों का मानना है कि यह पार्टी दरअसल “फेयरवेल” थी, और धनखड़ ने पहले ही तय कर लिया था कि वे इस्तीफा देंगे। सवाल यह है कि क्या इस्तीफा उन्होंने खुद लिया या पार्टी ने उन्हें यह विकल्प दिया?
अब नया सवाल: अगला उपराष्ट्रपति कौन?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? नाम कई हैं, लेकिन दो नाम सबसे मजबूत हैं— राजनाथ सिंह और हरिवंश नारायण सिंह।
राजनाथ सिंह: सीनियरिटी, संतुलन और सर्वस्वीकार्यता का चेहरा
राजनाथ भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं। दो बार पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। अटल युग से लेकर मोदी युग तक सरकार के हर दौर में प्रभावशाली रहे हैं। पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं, “अगर राजनाथ को उपराष्ट्रपति बनाया गया तो यह संकेत होगा कि पार्टी उन्हें भविष्य के राष्ट्रपति पद के लिए तैयार कर रही है।”
राजनाथ की छवि संतुलित, विचारधारा-निष्ठ और सर्वस्वीकार्य नेता की है। राज्यसभा में उनका संवाद कौशल भी उपराष्ट्रपति पद के लिए आदर्श माना जा रहा है।
हरिवंश नारायण सिंह: सहयोगियों को साथ रखने की रणनीति
वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जदयू कोटे से हैं, लेकिन एनडीए के भरोसेमंद चेहरे बन चुके हैं। उनके पास पत्रकारिता और संसद दोनों का लंबा अनुभव है। भाजपा यदि सहयोगी दलों को संदेश देना चाहे कि उन्हें सत्ता में सम्मानजनक भागीदारी मिलती है, तो हरिवंश को प्रमोट कर उपराष्ट्रपति बना सकती है।
अन्य संभावित नाम और समीकरण
शिवराज सिंह चौहान
भले ही कृषि मंत्री रहते हुए धनखड़ से भिड़ चुके हों, लेकिन वे भाजपा और आरएसएस के प्रिय नेता हैं।
उनका OBC पृष्ठभूमि और लंबा प्रशासनिक अनुभव उपराष्ट्रपति पद के लिए उन्हें उपयुक्त बनाता है।
रविशंकर प्रसाद
बिहार से आने वाले रविशंकर प्रसाद लंबे समय तक केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वकालत और कानून व्यवस्था पर उनकी पकड़ मजबूत है। वे सत्ता और विपक्ष दोनों खेमों में संवाद स्थापित कर सकते हैं।
नीतीश कुमार
यदि भाजपा बिहार में अपनी सरकार बनाना चाहती है तो नीतीश कुमार को दिल्ली बुलाकर उपराष्ट्रपति पद देना एक रणनीतिक चाल हो सकती है। हालांकि, नीतीश का सहमत होना संदेहास्पद है।
आरिफ मोहम्मद खान
मुस्लिम समाज में प्रगतिशील चेहरा माने जाने वाले आरिफ खान को यह पद देने से भाजपा यह संदेश दे सकती है कि वह मुस्लिम समुदाय को भी उच्च संवैधानिक पदों में प्रतिनिधित्व देती है।
शशि थरूर
हालांकि कांग्रेस में हैं, लेकिन थरूर की वैश्विक पहचान और अंग्रेज़ी वक्तृत्व कला उन्हें अपीलिंग बनाती है। हालांकि उनका नाम अभी केवल अटकलों में है, वास्तविक दौड़ में नहीं।
इस्तीफे की टाइमिंग: सिर्फ संयोग या रणनीति?
धनखड़ ने जब इस्तीफा दिया, उससे कुछ ही दिन पहले संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ था और विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार को घेरने की तैयारी में था। वहीं बिहार में चुनाव नजदीक हैं, और भाजपा वहां राजनीतिक संतुलन साधने में जुटी है। ऐसे में उपराष्ट्रपति का पद खाली होने से पार्टी को नए समीकरण बिठाने का अवसर मिला है।
विश्लेषक मानते हैं कि यह इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों से नहीं हुआ। यह एक रणनीतिक बदलाव की शुरुआत है, जिससे भाजपा 2026 की तैयारियों को और धार दे सकती है।
यह इस्तीफा, एक नई शुरुआत का संकेत
जगदीप धनखड़ का कार्यकाल विवादों और स्वतंत्र तेवरों से भरा रहा। वे ऐसे संवैधानिक पद पर थे, जहां सत्ता से टकराव अक्सर खबर बन जाता है। उनकी विदाई शांत रही, लेकिन इसके पीछे की हलचल भाजपा की रणनीति, असहमति और भावी योजनाओं को बेनकाब करती है।
अब नजरें केंद्र में नए चेहरे की ओर हैं, जो न सिर्फ संसद का संचालन करेगा, बल्कि सत्ता और सहयोगियों के बीच संतुलन भी साधेगा। और शायद आने वाले राष्ट्रपति चुनाव की भी तैयारी का हिस्सा बनेगा।