स्पेशल रिपोर्ट | नई दिल्ली । स्विस नेशनल बैंक ( swiss bank) द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आया कि 2024 के अंत तक भारतीयों की जमा राशि स्विस बैंकों में 3.54 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग ₹37,600 करोड़) तक पहुँच गई। यह राशि 2023 की तुलना में तीन गुना अधिक है, जब यह आंकड़ा केवल 1.04 अरब स्विस फ्रैंक था।

इस रिपोर्ट ने देश में एक बार फिर से काले धन की बहस को हवा दे दी है। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, हर जगह एक ही सवाल है—क्या यह पैसा वैध है या फिर वही पुरानी काली साजिश?

क्या स्विस बैंक का नाम अभी भी डराता है?

भारतीयों के मन में स्विस बैंक का नाम आते ही एक छवि बनती है—गुप्त खातों की, अनकहे अरबों की, और सरकार से छिपाई गई संपत्ति की। दशकों से यह धारणा बनी रही है कि स्विस बैंकों में जो पैसा है, वहां जरूर कुछ “गड़बड़” है।

लेकिन 2025 की वास्तविकता में अब यह धारणा वैसी नहीं रही। बैंकिंग विशेषज्ञ बताते हैं कि SNB की रिपोर्ट में जो आंकड़े दिए जाते हैं, उनमें इंटरबैंक डिपॉजिट्स, कॉर्पोरेट ट्रांजैक्शन, और डेरिवेटिव लायबिलिटीज भी शामिल होती हैं।

 बढ़ी जमा राशि का क्या मतलब?

रिपोर्ट के मुताबिक यह राशि सीधे भारतीय नागरिकों द्वारा व्यक्तिगत खातों में जमा नहीं की गई है। यह आंकड़ा उन सभी स्विस बैंकों की भारतीय शाखाओं और उनसे जुड़े लेन-देन को दर्शाता है, जिसमें:

  • भारत की कंपनियों द्वारा लिया गया विदेशी कर्ज

  • स्विस कंपनियों के साथ व्यापारिक समझौते

  • वित्तीय बाजार में किए गए निवेश

इसका सीधा मतलब है कि यह पूरी राशि “काला धन” नहीं है, बल्कि इसमें वैध कारोबारी गतिविधियाँ भी शामिल हैं।

AEOI सिस्टम: गोपनीयता का अंत?

2018 में भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच Automatic Exchange of Information (AEOI) समझौता लागू हुआ। इसके तहत स्विस बैंक भारत को हर साल भारतीयों के खातों की डिटेल देता है। इससे पहले जिन खातों को गोपनीय माना जाता था, अब वे निगरानी में हैं।

सरकार ने इस सिस्टम के ज़रिए हजारों खातों की जानकारी प्राप्त की है और कई मामलों में कर चोरी के खिलाफ कार्रवाई भी की है।

सुप्रीम कोर्ट और SIT की भूमिका

2009 में वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने काले धन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। इसके बाद 2011 में कोर्ट ने एक Special Investigation Team (SIT) गठित की, जिसकी जिम्मेदारी थी विदेशों में जमा काले धन की जांच करना। हालांकि, SIT की रिपोर्टें अब तक पूरी तरह सार्वजनिक नहीं की गई हैं। इससे जनता में पारदर्शिता को लेकर संदेह बना हुआ है।

सरकार बनाम विपक्ष: राजनीति गरम

जैसे ही SNB की रिपोर्ट सामने आई, विपक्ष ने संसद में हमला बोला। कांग्रेस और अन्य दलों ने सरकार से पूछा कि अगर सब वैध है, तो इसका ब्योरा सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा।

सरकार ने सफाई दी कि यह पैसा वैध रूप से स्विस बैंकों में ट्रांजैक्शन के रूप में गया है। इसके पीछे काले धन की कोई भूमिका नहीं है। वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा कि अगर किसी लेन-देन में अनियमितता मिलती है, तो उस पर कार्रवाई की जाएगी।

अंतरराष्ट्रीय तुलना: भारत कहां खड़ा है?

दुनियाभर के नागरिक स्विस बैंकों में पैसा जमा करते हैं। चीन, अमेरिका, जर्मनी और रूस के नागरिकों की भी बड़ी मात्रा में जमा राशि वहाँ होती है।

भारत इन देशों की तुलना में अब टॉप 10 में है, लेकिन इस सूची में शामिल होना अपने आप में अपराध नहीं है। सवाल तब उठता है जब जमा राशि का स्रोत अघोषित या संदिग्ध हो।

विशेषज्ञों की राय

अर्थशास्त्री मानते हैं कि सिर्फ SNB की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालना कि सारा पैसा अवैध है, गलत होगा। यह डेटा कई तरह के वित्तीय तत्वों को एकत्र करता है।

पूर्व RBI डिप्टी गवर्नर की राय में:

“हमें SNB डेटा को AEOI के आंकड़ों और भारतीय टैक्स विभाग की निगरानी के साथ मिलाकर देखना चाहिए। तब जाकर सही तस्वीर सामने आएगी।”

इतिहास की परछाइयां

इस मुद्दे पर भारतीय राजनीति का अतीत काफी मुखर रहा है। 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने “काला धन वापस लाने” को बड़ा मुद्दा बनाया था। यहां तक कि ₹15 लाख हर खाते में आने की बात लोगों को आज तक याद है — भले ही वह राजनीतिक रेटोरिक रहा हो SNB की ताज़ा रिपोर्ट उसी अतीत की परछाई में एक नई रोशनी डालती है, जिसमें भावनाएँ भी हैं, और प्रश्न भी।

बहस जारी है, सच्चाई का इंतज़ार

₹37,600 करोड़ की राशि कोई मामूली रकम नहीं है। लेकिन यह मान लेना कि पूरी की पूरी अवैध है — जल्दबाज़ी होगी।
सरकार को चाहिए कि वह जनता के सामने पारदर्शिता बनाए रखे। विपक्ष को चाहिए कि वह मुद्दा उठाए, लेकिन तथ्यों के साथ।
और जनता को चाहिए कि वह न तो हर चीज़ पर शक करे, न ही हर आंकड़े को ब्रह्मवाक्य माने।

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