रायपुर – राज्य के आबकारी विभाग में सामने आए 3200 करोड़ रुपए के शराब घोटाले में अब सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की चार्जशीट पेश होने के महज 85 घंटे बाद 22 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। इस घोटाले में अफसरों ने करीब 88 करोड़ रुपए का कमीशन अवैध रूप से अर्जित किया।

सरकार ने न सिर्फ इन अफसरों को हटाया, बल्कि तुरंत प्रभाव से उनके स्थान पर नए अफसरों की तैनाती भी कर दी है। नवनियुक्त अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे 24 घंटे के भीतर अपनी नई पोस्टिंग पर कार्यभार ग्रहण कर लें।

जांच में चौंकाने वाले खुलासे

EOW की चार्जशीट से सामने आया है कि जिन अफसरों को घोटाले का लाभ मिला, उन्हें उनकी पूरी नौकरी के वेतन से कहीं ज्यादा पैसा केवल कमीशन के रूप में मिला।

घोटाले में संलिप्त प्रमुख अधिकारी:

  • नोहर ठाकुर (उपायुक्त): ₹11.55 करोड़ कमीशन

  • नीतू नोतानी (महिला उपायुक्त): ₹7.78 करोड़

  • सोनल नेताम (सहायक आयुक्त): ₹53 लाख

  • मंजुश्री कसेर (जिला अधिकारी): ₹1.63 करोड़

इन अफसरों को प्रतिपेटी शराब पर औसतन 3.36% कमीशन दिया जाता था। यानि बिक्री का एक बड़ा हिस्सा सीधे इन अधिकारियों की जेब में पहुंच रहा था।

रिटायर हो चुके और मृत अधिकारी भी लपेटे में

चार्जशीट में 7 ऐसे अधिकारी भी शामिल हैं जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जबकि एक अधिकारी की मौत हो चुकी है। फिर भी उनके कार्यकाल में हुई अनियमितताओं के दस्तावेज जांच में दर्ज हैं।

महिला अधिकारी भी पीछे नहीं

इस घोटाले में महिला अफसरों की भूमिका भी उजागर हुई है। नीतू नोतानी, सोनल नेताम और मंजुश्री कसेर जैसी अधिकारी भी मोटा कमीशन लेती रहीं।

EOW ने शराब निरीक्षकों को मुख्य आरोपी बनाने के बजाय सरकारी गवाह बना लिया है, क्योंकि वह कैश कलेक्शन में सीधे तौर पर शामिल थे।

किसे किया गया सस्पेंड – पूरी लिस्ट

निलंबित अफसरों में शामिल हैं:
अनिमेष नेताम, अरविंद कुमार पाटले, नीतू नोतानी, नोहर सिंह ठाकुर, विजय सेन शर्मा, मोहित कुमार जायसवाल, गरीबपाल सिंह दर्दी, इकबाल अहमद खान, जनार्दन सिंह कौरव, नितिन खंडूजा, प्रमोद कुमार नेताम, विकास कुमार गोस्वामी, नवीन प्रताप सिंह तोमर, राजेश जायसवाल, मंजुश्री कसेर, दिनकर वासनिक, आशीष कोसम, सौरभ बख्शी, प्रकाश पाल, रामकृष्ण मिश्रा, अलेख राम सिदार, सोनल नेताम।

60 साल की नौकरी का पैसा, 3 साल में बना लिया

जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि कुछ अधिकारियों ने मात्र 3 साल में उतना पैसा कमा लिया जितना वे 60 साल तक सरकारी नौकरी करके भी नहीं कमा सकते थे।

सरकारी वेतन की तुलना में यह ‘कमीशन’ प्रणाली, एक समानांतर भ्रष्ट व्यवस्था की ओर संकेत करती है, जो विभागीय मिलीभगत के बिना संभव नहीं थी।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और अगला कदम

राज्य सरकार ने यह कार्रवाई भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत की है। सूत्रों के मुताबिक, आने वाले समय में और भी नामों का खुलासा हो सकता है और यह घोटाला अभी कई और परतें खोलेगा।

राजनीतिक गलियारों में भी इस कार्रवाई को लेकर हलचल तेज हो गई है। विपक्ष इस मामले में पूर्ववर्ती सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है।

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