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वाशिंगटन- Kashmir मुद्दे पर भारत की स्पष्ट नीति के बावजूद अमेरिका ने एक बार फिर संभावित “मध्यस्थता” की बात दोहराई है। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने मंगलवार को अपने बयान में कहा कि अगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस विवाद में कोई भूमिका निभाना चाहें, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होनी चाहिए।
ट्रम्प की संभावित पहल पर विदेश विभाग की प्रतिक्रिया
प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा,
“ट्रम्प राष्ट्रपति रहते और निजी तौर पर भी सदैव जटिल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के इच्छुक रहे हैं। यह उनकी शैली रही है, इसलिए अगर वे कश्मीर को लेकर कुछ करना चाहें तो वह कोई अचरज की बात नहीं होगी।”
हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे ट्रम्प की ओर से कुछ निश्चित नहीं कह सकतीं और इस विषय में व्हाइट हाउस या ट्रम्प टीम से संपर्क करना चाहिए।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
भारत ने अमेरिकी बयान का तुरंत जवाब देते हुए एक बार फिर साफ कर दिया है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं हो सकती।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भारतीय संसदीय समिति के सामने स्पष्ट किया कि हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिवसीय संघर्ष विराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने कहा,
“युद्धविराम का फैसला दोनों देशों ने द्विपक्षीय स्तर पर लिया। किसी भी तरह की मध्यस्थता नहीं हुई।”
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भी इसी रुख को दोहराते हुए कहा,
“हम पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा कोई भी मुद्दा सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच ही हल किया जाएगा। यह नीति बिल्कुल अटल है।”
ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख
जायसवाल ने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत की सैन्य प्रतिक्रिया इतनी प्रभावशाली थी कि पाकिस्तान को गोलीबारी रोकनी पड़ी। उन्होंने बताया कि भारत ने 10 मई की सुबह पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख ठिकानों पर सटीक और प्रभावी हमले किए थे, जो युद्धविराम का वास्तविक कारण बने।
अमेरिका का दावा: युद्धविराम में भूमिका निभाई
टैमी ब्रूस ने यह दावा भी किया कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान शांति बहाल करने में भूमिका निभाई। उन्होंने कहा,
“अगर हम उस विशेष संघर्ष में किसी बिंदु पर स्थायी समाधान तक पहुंचते हैं, तो यह सभी के लिए एक उपलब्धि होगी।”
हालांकि, भारत इस दावे को पूरी तरह खारिज कर चुका है।
पाकिस्तान से बातचीत पर चुप्पी
ब्रूस से जब यह पूछा गया कि क्या पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस आश्वासन दिया है, जब पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका में राजनीतिक मामलों की अवर सचिव एलिसन हुकर से मुलाकात की थी, तो उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया।
“मैं उन बातचीत के विवरण पर चर्चा नहीं करने जा रही हूं,” उन्होंने संक्षेप में कहा।
भारत का रुख: कोई बदलाव नहीं
भारत ने एक बार फिर जोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा मुख्य मुद्दा पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र को खाली कराना है। भारत इसे आंतरिक मामला मानता है और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को अस्वीकार करता रहा है।
Kashmir पर अमेरिका की हालिया टिप्पणी से एक बार फिर यह विवाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के केंद्र में आ गया है। जबकि अमेरिका ट्रम्प की भूमिका को संभावित विकल्प के रूप में देख रहा है, भारत इस मुद्दे को पूर्णत: द्विपक्षीय मानते हुए किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप को सिरे से नकारता है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या अमेरिका वास्तव में कोई पहल करता है, या भारत अपनी नीति पर पहले की तरह अडिग रहता है।