अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति “बढ़ता प्रेम” एक जटिल कहानी है, जिसमें सुरक्षा, आर्थिक हित और राजनीतिक रणनीति शामिल हैं। इसका मतलब है कि अमेरिका पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण साथी के रूप में देख रहा है, खासकर आतंकवाद विरोधी प्रयासों में। लेकिन यह भारत के लिए एक चुनौती पेश करता है, जो पाकिस्तान को एक सुरक्षा खतरा मानता है। भारत की चुप्पी इस मामले में उसकी रणनीति को लेकर सवाल खड़े करती है, जबकि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच यह गर्मी कितनी देर तक रहेगी, इस पर अभी भी अनिश्चितता है।
PIONEER DIGITAAL DESK
हाल ही में, अमेरिका के सेना प्रमुख जनरल माइकल कुरिला ने पाकिस्तान को “आतंकवाद विरोधी दुनिया में एक अद्भुत साथी” कहा, यह तारीफ 11 जून 2025 को एक कांग्रेसियल सुनवाई के दौरान आई, जिसमें कुरिला ने पाकिस्तान की सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की भूमिका को भी सराहा, जिन्होंने अमेरिका के खिलाफ हमले करने वाले आतंकवादियों को सौंपा। इसके अलावा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पाकिस्तान को 2021 के काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमले के मास्टरमाइंड को पकड़ने के लिए धन्यवाद दिया, जो आतंकवाद विरोधी संबंधों को मजबूत करने का संकेत देता है। यह सहयोग अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका को दर्शाता है, जहां पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण भौगोलिक और रणनीतिक साथी है। हालांकि, यह तारीफ विवादास्पद है, क्योंकि पाकिस्तान को लंबे समय से भारत और कुछ पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवाद का पोषक माना जाता रहा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस तारीफ को भारत के लिए एक कूटनीतिक प्रतिकूलता कहा, जो इस मुद्दे की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
कश्मीर में हस्तक्षेेप की पेशकश
व्हाइट हाउस ने इस बात के संकेत दिए हैं कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच हस्तक्षेप कर सकते हैं। व्हाईट हाउस की प्रवक्ता टैमी ब्रुस से यह पूछा गया कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करेंगे तो उनका जवाब था कि, ‘उनकी योजना पर मैं कुछ नहीं कह सकती लेकिन पूरी दुनिया ट्रंप की आदत जानती है। वह दुनिया में एकमात्र ऐसे हैं जो दो ऐसे लोगों में वार्ता करा सकते हैं जिसे असंभव माना जाता है। अगर वह ऐसा करते हैं तो किसी को अचंभित नहीं होना चाहिए।’

रणनीतिक हित देख रहा अमेरिका
अब जबकि चीन व अमेरिका के रिश्ते काफी तल्खी भरा है तो संभवत: अमेरिका रणनीतिक हितों को देखते हुए पाकिस्तान पर डोरे डाल रहा है। भारत ने इन दोनों गतिविधियों पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
क्या यह संबंध स्थायी है?
पाकिस्तान का इतिहास देखें तो यह पहली बार नहीं है जब उसने अमेरिका के साथ सहयोग किया है, लेकिन यह सहयोग हमेशा लंबे समय तक नहीं टिकता। पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में दोनों पक्षों का समर्थन किया है, लेकिन उसकी दोहरी नीति, जहां वह एक ओर अमेरिका के साथ सहयोग करता है और दूसरी ओर भारत के खिलाफ आतंकवाद को पोषित करता है, इस संबंध को जटिल बनाती है। ट्रंप का रुख भी अस्थिर हो सकता है, क्योंकि उनकी नीतियां अक्सर उनके व्यक्तिगत हितों और राजनीतिक लाभ पर आधारित होती हैं। अगर पाकिस्तान अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करने लगता है, तो यह संबंध फिर से तनावपूर्ण हो सकता है।
भारत की चुप्पी पर नाराज विपक्ष
भारत सरकार ने इस पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विपक्षी कांग्रेस ने इसे कूटनीतिक प्रतिकूलता माना है। यह भारत की रणनीतिक सावधानी या कमजोरी के रूप में देखा जा सकता है, खासकर पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए। कांग्रेस इस मामले में लगातार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उदाहरण देकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुुप्पी आलोचना करते रहे हैं।
अमेरिका-पाकिस्तान “प्रेम”: रणनीतिक हितों का पाँच दशक लंबा नाटक
हालांकि अभी पाकिस्तान चीन का ज्यादा करीबी बन गया है लेकिन इतिहास गवाह है कि अमेरिका औैर पाकिस्तान प्रेम कका इतिहास काफी पुराना है। इन बिदंंओं सेे समझतेे हैं कि दोनों के संंबंध सालों पुराने हें।
1; सैन्य गठजोड़ की नींव (1954–1965)
– पाकिस्तान को”एशिया का सबसे विश्वसनीय सहयोगी” घोषित कर अमेरिका ने-86 सेबर जेट्स, पैटन टैंक्स जैसे हथियार दिए। इसके पीछे अमेरिका सोवियत संघ के खिलाफ ढाल बनाना, भारत को कूटनीतिक दबाव में रखना। 1965 भारत-पाक युद्ध में अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल हुआ, फिर भी सहायता जारी रही।
2; अफगान जिहाद में साझेदारी (1979–1989)
सोवियत विरोधी अभियान: सीआईए ने पाकिस्तान केISI के जरिएमुजाहिदीनों को $3 अरब+ की सहायता पहुँचाई। ऑपरेशन साइक्लोन: राष्ट्रपतिरीगन ने जनरल ज़िया-उल-हक को”इस्लामिक हीरो” कहा। पेशावर में सीआईए कार्यालय खोला गया। परिणाम स्वरूप अल-कायदा और तालिबान का उदय, जिसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है।
3; आतंकवाद के बाद भी अनुदान (2001–2021) :
-9/11 के बाद डील: मुशर्रफ को”हम या तुम्हारे खिलाफ” का अल्टीमेटम। बदले में पाकिस्तान को मिला: $33 बिलियन सैन्य-आर्थिक सहायता (2001-2021)। -ड्रोन हमलों की छूट:के सबूत मिलमिततउत्तरी वजीरिस्तान में 430+ अमेरिकी ड्रोन हमले। ओसामा बिन लादेनपाकिस्तानी छावनी (एबटाबाद) में पाया गया, फिर भी सहायता जारी रही।
4. परमाणु छूट का खेल (1980–आज तक)
भारत पर1998 में परमाणु परीक्षण के बाद प्रतिबंध लगे। पाकिस्तान केए.क्यू. खान नेटवर्क(लीबिया, ईरान, N. Korea को परमाणु तकनीक बेची) को नज़रअंदाज़ किया गया। 2016 में$430 मिलियन के लड़ाकू विमानों की आपूर्ति की गई और भारत का विरोध ठुकराया गया।
कूटनीतिक “पैरवी” (2020–2024)
-तालिबान समर्थन: अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी में पाकिस्तान कोमध्यस्थ बनाया गया। आईएमएफ बेलआउट: 2023 में पाकिस्तान को$3 बिलियन लोन दिलाने में अमेरिकी दबाव। चीन-रुतबे की चुनौती सामने है इसलिए अमेरिका अब भी CPEC/Gwadar को रोकने के लिए पाकिस्तान को “स्ट्रैटेजिक पार्टनर” बताता है।
कड़वा सच: “प्रेम” नहीं, मजबूरी है!

1.भू-राजनीति: अफगानिस्तान, ईरान और चीन से सटी सीमा पर नियंत्रण के लिए पाकिस्तान जरूरी।
2.सैन्य अड्डे: क्वेटा/पेशावर एयरबेस अमेरिकी ड्रोन ऑपरेशन्स के लिए महत्वपूर्ण।
3.चीन का प्रतिकार: पाकिस्तान को भारत के खिलाफ खड़ा रखकर बीजिंग को एशिया में चुनौती देना।