नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र Modi और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड Trump के बीच आज एक अहम टेलीफोन बातचीत हुई। यह बातचीत करीब 35 मिनट तक चली, जिसमें आतंकवाद, भारत-पाकिस्तान के हालिया तनाव और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विस्तार से चर्चा हुई।
यह बातचीत ट्रंप के विशेष अनुरोध पर हुई। असल में जी-7 सम्मेलन में दोनों नेताओं की मुलाक़ात तय थी, लेकिन ट्रंप को अचानक अमेरिका लौटना पड़ा, जिससे आमने-सामने की बातचीत नहीं हो सकी।
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने आतंकियों के खिलाफ सीमापार एक सर्जिकल ऑपरेशन चलाया, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया। इसमें आतंक के अड्डों को निशाना बनाकर पूरी रणनीति से कार्रवाई की गई। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान और दुनिया को साफ संदेश दिया कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा।
अब भारत सहन नहीं करेगा, जवाब देगा – और वह भी पूरी ताकत से।” – पीएम मोदी
भारत ने मध्यस्थता को किया खारिज
बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की कोई जरूरत नहीं है और न ही भारत इसे कभी स्वीकार करेगा। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया,
“प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत न कभी मध्यस्थता को मानता है, न अब मानेगा, और न ही भविष्य में।”
पाकिस्तान की तरफ से कुछ समय पहले सैन्य चैनलों के ज़रिए सीज़फायर की अपील की गई थी, जिस पर भारत ने केवल अपने नियमों के तहत प्रतिक्रिया दी।
ट्रंप ने जताई सहानुभूति, किया समर्थन
डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से हमले के लिए संवेदना प्रकट की और आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन किया। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका भारत के साथ इस लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। ट्रंप ने कहा:
“भारत का जवाब निर्णायक और जरूरी था। हम आपके साथ हैं।”
ट्रंप को भारत आने का न्योता
पीएम मोदी ने ट्रंप को भारत आने का न्योता दिया, खासतौर पर अगली क्वाड बैठक के लिए। ट्रंप ने इस निमंत्रण को स्वीकार कर कहा कि वह भारत आने के लिए उत्सुक हैं। हालांकि ट्रंप ने मोदी से यह भी पूछा कि क्या वह कनाडा से लौटते समय अमेरिका में रुक सकते हैं, लेकिन पीएम मोदी ने पहले से तय कार्यक्रमों का हवाला देते हुए असमर्थता जताई।
बातचीत के मायने क्या हैं?
यह बातचीत केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि कई अहम संकेत देती है:
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भारत का रुख साफ: देश की सुरक्षा और रणनीति पर कोई समझौता नहीं।
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मजबूत नेतृत्व: मोदी सरकार आतंक के खिलाफ कड़ा संदेश देने में पीछे नहीं हटती।
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अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका जैसे देश भारत की कार्रवाई को जायज़ मानते हैं।
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मध्यस्थता को ना: भारत-पाक मामले को भारत खुद हैंडल करेगा, किसी तीसरे की जरूरत नहीं