गृह मंत्रालय ने 16 जून 2025 को आधिकारिक रूप से भारत की अगली जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी है। जनगणना दो चरणों में कराई जाएगी। यह सामान्य जनगणना से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस बार इसमें जातिगत आंकड़ों को भी शामिल किया जाएगा। पहली बार ऐसा हो रहा है कि OBC, SC, ST समेत सभी सामाजिक वर्गों की विस्तृत गिनती मूल जनगणना का हिस्सा होगी। इससे पहले जातिगत जनगणना केवल 1931 में हुई थी।
फेज़‑1: हिमालयी राज्यों से होगी शुरुआत
पहला फेज़ 1 अक्टूबर 2026 से चार हिमालयी राज्यों में शुरू होगा: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख।
इन राज्यों में मौसम की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जनगणना जल्दी शुरू की जाती है क्योंकि मार्च-अप्रैल में इन इलाकों में बर्फबारी और बर्फ के कारण जनगणना कार्य बाधित हो सकता है।
यह फेज़ मुख्य रूप से पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्रों में सरकार की उपस्थिति और जनसंख्या के सामाजिक ढांचे को समझने के लिए अहम माना जा रहा है।
फेज़‑2: देश के शेष हिस्सों में मार्च 2027 से
भारत के अन्य सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनगणना का दूसरा फेज़ 1 मार्च 2027 से आरंभ होगा। यह “संदर्भ तिथि” पूरे भारत के लिए समान होगी।
यानी किसी भी नागरिक का विवरण इस तिथि के अनुसार दर्ज किया जाएगा: वह कहाँ रहता है, क्या करता है, उसकी जाति, शिक्षा, आय, प्रवास आदि की स्थिति क्या है।
जातिगत जनगणना का ऐतिहासिक महत्व
1931 के बाद यह पहली बार होगा जब केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से जातियों की गिनती की जाएगी। यह मांग दशकों से की जा रही थी।
जातिगत जनगणना से न केवल सामाजिक संरचना की स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी, बल्कि नीति निर्धारण, आरक्षण प्रणाली, और कल्याणकारी योजनाओं को वैज्ञानिक आधार भी मिलेगा।
भारत में जातियों की जटिल संरचना है — केवल OBC की ही लगभग 2650 जातियां केंद्र सरकार की सूची में हैं। अभी तक इनकी संख्या का कोई प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है।
जनगणना अधिनियम 1948 में बदलाव की ज़रूरत
वर्तमान में जनगणना अधिनियम 1948 केवल SC और ST वर्ग की गणना की अनुमति देता है। अगर OBC की जातियों को जनगणना में शामिल करना है, तो एक्ट में संशोधन अनिवार्य होगा।
संभावना है कि आगामी संसद सत्र में इस पर विधेयक लाया जाएगा। एक बार संशोधन होने के बाद केंद्र को सभी जातियों के विस्तृत आंकड़े इकट्ठा करने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा।
डेटा से क्या उम्मीद की जा रही है?
जातिगत जनगणना के माध्यम से सरकार को पहली बार पूरे भारत की जातीय संरचना की वैज्ञानिक जानकारी मिलेगी। इससे अनेक लाभ संभावित हैं:
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आरक्षण नीति की समीक्षा: क्या वाकई आरक्षण सही जातियों को मिल रहा है?
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शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं का टार्गेटिंग: किन जातियों की शिक्षा दर कम है? कौन आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े हैं?
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आर्थिक नीति निर्धारण: OBC वर्ग में कौन-सी जातियां वास्तव में वंचित हैं?
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प्रवासी जातीय समूहों की पहचान: कौन-सी जातियां शहरीकरण में आगे बढ़ रही हैं?
2011 की SECC का अधूरा सच
2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (SECC) करवाई गई थी। इस कार्य में ग्रामीण और शहरी विकास मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय भी शामिल था।
हालांकि, उस समय केवल SC और ST वर्ग के आंकड़े ही सार्वजनिक किए गए। OBC और अन्य जातियों के आंकड़ों को कभी जारी नहीं किया गया, जिसका कारण ‘डेटा की अशुद्धता’ और ‘राजनीतिक विवाद’ बताया गया था।
वर्तमान जनगणना का सबसे बड़ा वादा यही है — पारदर्शिता और पूर्णता।
राजनीतिक मोर्चा: समर्थन और विरोध
जातिगत जनगणना को लेकर राजनीति हमेशा गर्म रही है।
राहुल गांधी ने 2023 से लगातार इस मुद्दे को राष्ट्रीय मंच पर उठाया। उन्होंने कहा:
“जिसके पास आंकड़ा नहीं है, वो न्याय नहीं कर सकता।“
इस मांग को कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा, JDU, DMK जैसी पार्टियों का समर्थन मिला।
दूसरी तरफ, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बयान दिया कि कांग्रेस सरकारों ने अतीत में जाति जनगणना का विरोध किया था, और 2011 में जानबूझकर डेटा नहीं जारी किया।
सामाजिक चुनौतियां और विवाद
जातिगत जनगणना के अपने जोखिम भी हैं:
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सामाजिक ध्रुवीकरण: आंकड़ों के आधार पर जातियों में तुलना और असंतोष उत्पन्न हो सकता है।
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आरक्षण की मांग बढ़ेगी: अधिक जनसंख्या वाले जातीय समूह अपने अनुपात के अनुसार आरक्षण की मांग कर सकते हैं।
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राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं: आंकड़ों के आधार पर जातियों का राजनीतिक प्रभाव भी पुनर्परिभाषित होगा।
मंडल कमीशन और जनगणना का संबंध
1979 में गठित मंडल आयोग ने OBC वर्ग के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी, जिसे 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने लागू किया।
लेकिन तब से अब तक किसी भी सरकार के पास यह जानकारी नहीं थी कि OBC आबादी कितनी है।
अब इस जनगणना के बाद यह आंकड़े सामने आएंगे, जिससे मंडल आयोग की नीतियों की प्रभावशीलता की भी समीक्षा की जा सकेगी।
2021 जनगणना क्यों नहीं हो सकी?
हर 10 साल पर जनगणना होती है, लेकिन 2021 की जनगणना COVID-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। इससे जनसंख्या, प्रवासन, रोजगार, शिक्षा जैसे अनेक सेक्टरों में नीतिगत निर्णय कठिन हो गए।
अब 2027 में यह जनगणना न केवल देरी से हो रही है बल्कि और अधिक महत्व की बन चुकी है क्योंकि अब इसमें जातीय आंकड़े भी शामिल किए जा रहे हैं।
जनगणना फॉर्म में होंगे विशेष कॉलम
जनगणना के फॉर्म में अब जातिगत कॉलम को विशेष स्थान दिया जाएगा। पहले 29 कॉलम होते थे, जिनमें नाम, पता, लिंग, जन्मतिथि, शिक्षा, रोजगार, भाषा आदि शामिल होते थे।
अब यह फॉर्म बदल सकता है और जाति, वर्ग, सामाजिक समूह, आर्थिक स्थिति आदि के विवरण के लिए अतिरिक्त कॉलम जोड़े जा सकते हैं।
जनगणना या जन-आंदोलन?
जनगणना 2026-27 केवल आंकड़ों का संकलन नहीं है, यह सामाजिक न्याय, समान अवसर, और सटीक नीति निर्माण की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।
यह कदम भारत को आंकड़ों की रोशनी में लाकर “डाटा-ड्रिवन डेमोक्रेसी” की ओर ले जाएगा।
जनता की भूमिका भी अहम
जनगणना की सफलता केवल सरकारी तंत्र पर निर्भर नहीं करती। इसके लिए नागरिकों की भागीदारी, ईमानदारी और जागरूकता भी जरूरी है। सभी को यह समझना होगा कि यह प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों के लिए सामाजिक न्याय और प्रगति की आधारशिला रखेगी।